दक्कन में 48 घंटे
कुल जमा 48 घंटों की मोहलत अगर किसी शहर को खंगालने की मिली हो तो भी आप क्या कुछ नहीं कर सकते, इसी चुनौती को बीते महीने स्वीकारा था। हैदराबाद के राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से काउंटडाउन शुरू हो चुका था। मगर हवाईअड्डे की दीवारों ने जैसे साजिशें शुरू कर दी थीं हमें हराने की। एराइवल कॅन्कॉर्स (आगमन लॉबी) में सैलानियों को अपने मोहपाश में बांधने के लिए कितनी ही स्क्रीनें थी जिन पर गोलकुंडा और चारमीनार से लेकर सालारजंग संग्रहालय की विरासत टंकी थी। कुछ आगे बढ़ने पर आभास हुआ जैसे हवाईअड्डे में न होकर किसी आर्ट गैलरी से गुजर रही हूं। हिंदुस्तानी जीवनशैली से रूबरू कराने वाली पेंटिंग्स ने अपने आकर्षण में जकड़ लिया था। इस बीच, रामोजी फिल्म सिटी से हमें लेने आए ड्राइवर का फोन दो बार आ चुका था, मुझे उसकी बेताबी समझ आ रही थी, लिहाजा हड़बड़ी में कलात्मक दीवारों को निहारा, फिर कभी फुर्सत में उनसे मिलने का गुपचुप वादा किया और अपनी अगली मंजिल की तरफ बढ़ गई। मगर इस छोटी-सी मुलाकात में इतना तो समझ आ चुका था कि अपने देश के आधुनिकतकम हवाई अड्डों में से एक है हैदराबाद का इंटरनेशनल एयरपोर्ट।
दक्कनी पठार का सफर
हवाईअड्डे के बाहर मीलों लंबे फैले करीने से सजे लैंडस्केप से मंत्रमुग्ध थी कि बादलों की घेराबंदी का अहसास कराती बूंदों ने शहर में स्वागत गान बजाना शुरू कर दिया था। दक्कन का पठार अब भूगोल के पन्नों से निकलकर कार की खिड़की के बाहर आ खड़ा हुआ था। रामोजी फिल्मसिटी की तरफ भागते तन और मन के बीच ठीक उसी क्षण से द्वंद्व शुरू हो चुका था। तन था जो भाग रहा था और मन था जो वहीं कहीं पठार के सीने पर उभर आयी किसी पहाड़ी या बादल के किसी कोने में अटक-अटक जाना चाहता था।
इस बीच, एक्सप्रेसवे पर बढ़ चली थी हमारी कार और मुंबई, बेंगलुरु को जाने वाले हाइवे पीछे छूटते जा रहे थे। हवाईअड्डे से रामोजी फिल्मसिटी का फासला करीब 40 मिनट का था, सपाट सड़कों पर फर्राटा दौड़ते छुटपुट वाहन और उन सबसे सरपट दौड़ता मेरा आवारा मन। श्रीसैलम करीब 200 किलोमीटर दूर था यहां से, हाइवे के किनारे लगे बोर्ड तेलंगाना के इस तीर्थ की जानकारी दे रहे थे। तिरुपति और श्रीसैलम दो बड़े तीर्थ हैं जो तेलंगाना को लोकप्रिय बनाए रखने के साथ-साथ इसकी अर्थव्यवस्था को भी मजबूत आधार देते हैं। और मेरी मंजिल इनमें से एक भी नहीं थी, मेरा ठिकाना रामोजी फिल्मसिटी था जो सैलानियों की लोकप्रियता के पायदान टापते हुए गिनीज़ बुक के पन्नों में दर्ज हो चुका है।
रामोजी फिल्मसिटी — दक्कनी सरज़मीं पर आश्चर्यलोक
हाइवे खत्म हुआ तो एक मोड़ मुड़ते ही एक छोटा-सा कस्बानुमा उमरखानगुड़ा सामने था। रंगारेड्डी जिले के इस कस्बे में दिन ढले जीवन धीरे-धीरे सिमट रहा था। लोग काम-धंधों से घरों को लौट आए थे, कुछ घरों के सामने बैठे थे, एक कोने में एक बूढ़ा अपनी मुर्गियां बाड़े में धकेल रहा था, उमरखानगुड़ा का स्कूल भी शांत हो चुका था। इसे पार करते ही वो जादुई मंज़र मेरे सामने था जिसे हैदराबाद में पुराने और नए का भेद समझने के लिए देखना जरूरी था। इतिहास के झरोखों को छोड़कर होटल ‘तारा’ की आधुनिक चकाचौंध में 24 घंटे बिताने का खुद से वादा लिया था, विरासतों के शहर में उस नगरी में खुद को ले आयी थी जो आगे चलकर खुद एक विरासत बनने जा रही है, इक्कीसवीं सदी की विरासत।
2000 एकड़ में फैली फिल्मसिटी के होटल ‘तारा’ में हम सैलानियों का चंदन तिलक से पारंपरिक स्वागत हिंदुस्तानी आतिथ्य परंपरा की गर्मजोशी की मिसाल की तरह था। तेलुगूभाषी स्टाफ मेरी हिंदी जुबान से कतई जूझता नहीं लगा। दक्कनी सरज़मीं पर मेरे आश्चर्यों की परतें खुलनी शुरू हो चुकी थी। ‘तारा’ की सतरंगी लॉबी छोड़कर जाने का मन तो नहीं था लेकिन बीते घंटों के सफर ने मुझे अब तक थका दिया था, कुछ आराम की खातिर अपने कमरे का रुख करना भी जरूरी था।
अगले दिन 12 घंटे फिल्मसिटी के रोमांच के नाम तय थे। दुनिया की इस सबसे बड़ी फिल्मसिटी में आखिर ऐसा क्या है कि दुनियाभर से सैलानी इसमें पहुंचते हैं। ”अमूमन 3000 पर्यटकों की रोज़ आवाजाही दर्ज होती है और अगर छुट्टी का दिन हो, कार्निवाल का समां बंधा हो तो यह आंकड़ा 10,000 तक पहुंच जाता है”, रामोजी फिल्मसिटी के वाइस प्रेसीडेंट ए वी राव मेरे अचरज को भांप गए थे और उस तिलिस्म पर पड़े परदे को धीरे-धीरे हटा रहे थे जिसने मुझ इतिहास प्रेमी को इस आधुनिक वंडरलैंड की तरफ मोड़ दिया था।
कैसी है फिल्मसिटी
साल भर में करीब दो सौ फिल्मों की शूटिंग का गढ़ बनी रहती है फिल्मसिटी, इस खुलासे से लगा था कि शायद फिल्मी स्टूडियो की भरमार होगी वहां। लेकिन पूरी तरह गलत निकला मेरा अनुमान।
खुले आसमान तले एक से बढ़कर एक अचरज में डालते बगीचे, कर्नाटक के मैसूर गार्डन से लेकर राजस्थान के महलों-मीनारों तक के रेप्लिका, कहीं किसी फव्वारे के झागदार छींटों से झांकती यूनानी सौंदर्यबाला, किसी मोड़ मुड़ते ही दक्षिण भारत के किसी देहात का आभास देता सैट तो अगले ही मोड़ पर सैंट्रल जेल का अहाता। फिल्मी सिचुएशन की मांग के मुताबिक तरह-तरह के सैट, सैटों के हिसाब से पूरी साज-सज्जा जो असल से हुबहू मेल खा रही थी।
और ये क्या? एकाएक हैदराबाद स्टेशन कैसे पहुंच गए हम? प्लेटफार्म पर वही रेल-पेल, वही टिकट खिड़की, और तो और लाल वर्दी पहने खड़ा कुली भी। बस फर्क इतना था कि कुली किसी ट्रंक-सूटकेस को उठाए नहीं था बल्कि उसके गले में डीएसएलआर कैमरा टंगा था उस स्टेशन पर से गुजरने वाले ‘यात्रियों’ की फोटू उतारने के लिए।
तो यह भी रामोजी फिल्मसिटी का मायाजाल ही था। हैदराबाद स्टेशन का पूरा दृश्य साकार कर दिया था, प्लेटफार्म पर ट्रेन का डिब्बा, डिब्बे से जुड़ा इंजन, एक ब्रिज भी जिसकी सीढ़ियों से उतरकर आप पहुंच जाते हैं किसी दूसरे ही कस्बे में। फिल्मों की शूटिंग के लिए ऐसे जाने कितने ही स्थायी सैट रामोजी की इस नगरी में बनाए गए हैं।
महाभारतकालीन राजमहल से लेकर बौद्ध गुफाओं तक से गुजरते हुए जब थक गए तो फिल्मसिटी की सैर कराती हेरिटेज बस हमें उस मायानगरी में घुमाने के लिए तैयार थी।
आप डे टूरिस्ट के तौर पर यहां आ सकते हैं, आउटस्टेशन सैलानी हैं तो “तारा” और “सितारा” (The hotels at Ramoji Film City include luxury hotel Sitara, comfort hotel Tara, economy stay at Shantiniketan and super economy shared accommodation at Sahara) होटलों में ठहर सकते हैं, तरह-तरह के पैकेजों में से मनपसंद चुन सकते हैं जिनमें रहने, खाने-घूमने, रोमांचकारी अनुभवों से गुजरने, स्टंट शो, गेम्स, एडवेंचर राइड्स जैसे जाने कितने ही आकर्षण आपके हिस्से आते हैं।
एडवेंचर की भरपूर खुराक के लिए ‘साहस’ चुन लीजिए जहां आपको मिलता है असल एडवेंचर और थ्रिल का अद्भुत मेल।
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हैदराबाद (accessibility options)
भारत के सबसे युवा और 29वें राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद पहुंचना आसान है। मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली, पुणे, चेन्नई, रायपुर समेत अनेक राज्यों समेत दुनिया के कई देशों से सीधे हवाई मार्ग से जुड़ा है। इसके अलावा, देश के कई भागों से सड़क और रेलसंपर्क भी है।
कब है सैलानियों के लिए बेहतरीन मौसम: मार्च से जून तक गर्मियों और जून-सितंबर तक बारिश के महीनों को छोड़कर सुहाने मौसम में हैदराबाद की सैर की जा सकती है।
सफर अभी बाकी है, पहले 24 घंटे का हाल सुनाया है अभी तो। अगला दिन एकदम उलट था, पुराने शहर से बावस्ता थे हम।
ले चलेंगे कल आपको वहां भी।
साथ बने रहिए …