Alka Kaushik

Musical Instruments Museum – Keeper of tunes

विरासतों के शहर में सुरों की अठखेलियां

शहनाई तो सुनी होगी आपने मगर सुरनाई क्या होता है? शास्त्रीय संगीत में सारंगी की धुनों को खूब सराहा जाता है लेकिन सारंगा कैसे बजता है? और तानपुरा बेशक आपने बजता सुना होगा लेकिन क्या तंदुरा से वाकिफ हैं? संगीत की दुनिया में तंबुरा और तंबुरी क्या होता है? इन पहेलियों में दिलचस्पी हो तो हम आपको आज लिए चलते हैं राजधानी दिल्ली के दिल में छिपे उस अजब-गजब संग्रहालय में जहां ओडिशा से कच्छ तक और कश्मीर से तमिलनाडु तक की संगीत की दुनिया के साज और सुर संभले हुए हैं।

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यह है वाद्य-यंत्र संग्रहालय (Musical Instruments Museum) जो संगीत नाटक अकादमी की देखरेख में पिछले 52 वर्षों से पूरे हिंदुस्तान की सांगितिक धरोहर को संभालने का काम करता आ रहा है।

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RudraVeena/ North India (Image by SNA)

जाने-माने वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन ने 1964 में संगीत वाद्य यंत्रों की एक छोटी-सी दीर्घा का उद्घाटन किया था। देश के कोने-कोने से संगीतकारों, आम लोगों, लोक कलाकारों से लिए गए ऐसे करीब चार सौ वाद्य-यंत्रों की एक प्रदर्शनी 1968 में लगायी गई। और उस प्रदर्शनी की कामयाबी ने आगे भी साजों की साज-संभाल को प्रेरित किया। धीरे-धीरे इस संग्रह में मुखौटों, पगड़ियों और कठपुतलियों को भी जोड़ा जाने लगा। वो कारवां तबसे चला आ रहा है और आज करीब 1000 वाद्य-यंत्रों के विशाल एवं अद्भुत संग्रह के साथ मंडी हाउस के आसपास बिखरी रंगीनियों में कहीं खो सा गया है।

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Nagada, Percussion/Himachal Pradesh (Image by SNA)

फिरोजशाह रोड पर रबिंद्र भवन के गेट के गिर्द बेशक इस संग्रहालय का बोर्ड टंगा है मगर इमारतों-संस्थाओं के उस मेले में यह नाम कहीं गुम हो जाता है। आप बहुत जिद करके इसे देखने जाएंगे तभी खोज पाएंगे वरना बड़े-बड़े नामों, दीर्घाओं की रेल-पेल में इस तक पहुंच नहीं पाओगे।

एक म्युज़ियम जिसमें क्यूरेटर भी है!

सरकारी संरक्षण में चलने वाली संस्थाएं अमूमन ख्स्ताहाल ही होती हैं। लेकिन यह म्युज़ियम एक अपवाद है। रविंद्र भवन में कदम रखते ही गलियारे से होते हुए लिफ्ट के पीछे लगभग छिपे हुए इस म्युज़ियम तक पहुंचने की दूरी नापते हुए फिनायल की गंध आपको बताएगी कि यहां ‘स्वच्छ भारत’ वाकई एक सच्चाई है। संग्रहालय की दीर्घाओं के चमकते फर्श, धूल का नामोनिशान नहीं, ठंड का अहसास कराने की हद तक ‘एफिशिएंट’ एयर कंडीशनर, बेहद करीने से सजा संग्रह और वाद्यों की आवाज़ों को सुनाने वाला किओस्क सभी कुछ तो है जो काम करता है। आप संग्रह से भी ज्यादा इस सरकारी संग्रहालय की ‘एफिशिएंसी’ पर मोहित होते हैं। आखिर कितने म्युज़ियम आपने देखे हैं जिनमें क्यूरेटर भी आपको दिख जाए? लेकिन यहां न सिर्फ संग्रहालय को चकाचक रखने वाली व्यवस्था को आप सराहते हैं बल्कि क्यूरेटर श्री जयंत के धैर्य को भी जो एक-एक वाद्य के बारे में आपको बताने-समझाने को तत्पर रहते हैं।

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Team TCBG (Travel Correspondents & Bloggers Group) with Curator Mr Jayant (extreme right)

फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी वर्जित

कभी-कभी झुंझलाहट होती है सरकारी नियमों से, वो यहां भी होती है। जाने कौन-से जमाने का कानून आज भी यहां चलता है जो फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करने की इजाज़त विज़िटर्स को नहीं देता। और उससे भी भयंकर नियम के चलते तस्वीरें लेने के लिए आपको संगीत नाटक अकादमी के सचिव के नाम लिखित दरख्वात करनी पड़ती है और तब कहीं जाकर 32/रु प्रति प्रिंट के खर्च पर आपको मनपसंद वाद्यों की तस्वीरें दो—चार रोज़ में उपलब्ध करा दी जाती हैं।

बीते दो हफ्तों में इस म्युज़ियम के दो फेरे लगाने के बाद भी अब तक समझ नहीं पायी हूं कि आखिर कौन सी ‘क्लासीफाइड’ जानकारी इसमें कैद है जो तस्वीरों पर पाबंदी है। संस्कृति मंत्रालय और संगीत नाटक अकादमी को ज़रा गौर कर लेना चाहिए कि प्रतिबंधों का दौर कब का बीत चुका है, आखिर प्रचार-प्रसार के इस युग में विज़िटर्स को फोटो लेने से रोकने पर नुकसान ही है।

मुटठी भर ज़मीन पर वाद्यों, मुखौटों और कठपुतलियों का सम्मोहक संसार

संग्रहालय का नाम तो इसे मिल गया मगर जगह मुटठी भर ही है जो उस ज़माने से उतनी ही है जब इसकी स्थापना हुई थी। इस बीच, सुरों की गागर भरती रही, मुखौटों की दुनिया भी बढ़ती रही और कठपुतलियों का रंग-बिरंगा संसार भी लगातार और सम्मोहक बनता रहा। लेकिन संग्रहालय की दीर्घाओं को अंगड़ायी लेने की जगह नसीब नहीं हुई।

एक बड़ा सब्र इस बात का है कि इनकी देखभाल में इस दौरान कोई कोताही नहीं बरती गई। अमूमन सरकारी संस्थाओं में जिस बेरुखी से साबका पड़ता है उसका एक भी निशान यहां नहीं दिखता। अलबत्ता, एक अलग ‘निशान’ यहां शान से सजा है। हम बात कर रहे हैं ओडिशा और बस्तर के आदिवासियों द्वारा बजाए जाने वाले आनद्ध् वाद्य-यंत्र (मेंब्रेनोफोन) ‘निशान’ की जिसकी धमक पर ये समाज अपने उत्सवों में शिरकत करते हैं।

हुड़के की धमक से रबाब की स्वर-लहरियों तक

वाद्य-यंत्र संग्रहालय के क्यूरेटर जयंत राज चौधरी की देखरेख में ये वाद्य-यंत्र इस म्युज़ियम में खिलखिलाते दिखते हैं। जयंत कहते हैं “आपको आरोह—अवरोह की ज़रा भी समझ हो या नहीं तो भी म्युज़ियम के भीतर रखे किओस्क को टटोलना न भूलें। इसमें आपको उन दुर्लभ साजों की आवाज़ सुनने को मिलेगी जो यहां पिछली आधी सदी से जमा हैं। जब साठ के दशक के शुरू में संगीत नाटक अकादमी ने देश के दूर-दराज से लोक-कलाकारों से, घुमंतु समाजों से, आदिवासियों से इन वाद्य-यंत्रों को जोड़ना शुरू किया था तो उसी के साथ इनके सुरों को भी कैद करना याद रखा था।”

Listen to rabab, the classical instrument from Jammu-Kashmir

महाराष्ट्र के तुनतुने, ओडिशा की तुरही, उत्तराखंड का हुड़का, दक्षिण भारत की वीणा, पंजाब की तुंबी, आंध्र प्रदेश का तोयिला, बिहार का तिरिहो, उत्तर भारत का स्वरमंडल और जम्मू कश्मीर का रबाब, संतूर, सैतार, सारंगा, साज़-ए-कश्मीर, ताशा  से लेकर राजस्थान का श्री-मंडल और सिक्किम का सत्संग; मणिपुर का सेनमू, शेंग खेंग और उत्तर प्रदेश का प्रेमताल मंडी हाउस के किसी कोने में दुबके हुए नहीं बल्कि पूरी शान से सजे हैं। जाने-माने तबला वादक स्वर्गीय किशन महाराज का तबला भी इस संग्रह में शामिल है।

पूर्वोत्तर के आदिवासी समाज से लेकर राजस्थान के लोक कलाकारों तक की धुनों को समेटने वाले इस म्युज़ियम में हर दिन अमूमन बीस—बाइस दर्शकों के अलावा कभी संगीत विद्यालयों के छात्र और कभी रिसर्चर, स्कॉलर पहुंचते हैं। जगह तंग है, मगर संगीत वाद्य-यंत्रों को शायद उस दुलार से सब्र है जो उन्हें इस एयरकंडीशंड म्युज़ियम में भरपूर नसीब है। धूल का एक कतरा नहीं, शोर की कोई लहर भी नहीं और कुछ देर आप धरोहरों के शहर में खो जाते हैं अद्भुत संगीतमय धरोहर के साथ।

मुखौटों और कठपुतलियों का भी घर है यहां

म्युज़ियम के नाम से आपको भ्रम हो सकता है कि यहां सिर्फ संगीत के वाद्य यंत्रों का संग्रह ही होगा लेकिन आपको हैरत में डाल देने के लिए एक अलग दीर्घा में रंगीन मुखौटे सजे हैं। लद्दाख के मठों में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा छाम नृत्य के दौरान पहने जाने वाले अजब-गजब मुखौटे, कोई आपको हतप्रभ करेंगे तो कोई डराएंगे या हंसाएंगे। रावण का मुखौटा तो कहीं नरसिम्ह का चेहरा, किसी कोने में देवी की शांत मुद्राओं वाले मुखौटे तो एक अलग दीर्घा रंग-बिरंगी कुठपुतलियों के लिए है।

कहने का मतलब यह है कि जब इस जगह आओ तो एकाध घंटा निकालकर लाना, अपने ही आंगन में सिमटी इस दुनिया से मिलने जब जाना तो रबाब की स्वर-लहरियों में डूबना मत भूलना, पुंगी की धुनों के संग झूमना भी याद रखना।

वाद्य-यंत्र संग्रहालय (Musical Instruments Museum) 35, फिरोज़शाह रोड / Ferozshah Road 

नई दिल्ली /New Delhi 110001 फोन / Phone : 011 23387246/ 48 email : mail@sangeetnatak.gov.in  website : http://www.sangeetnatak.gov.in/ 

P.S. – I sought special permission from the curator of the museum to click a couple of photographs inside the museum.

Picture Credits – Soft Images of Nagada and Rudra Veena have been kindly made available by SNA after my written request. (And the Academy didn’t charge a peeny for these besides a couple of other photographs )