Alka Kaushik

Haveli Dharampura – tête-à-tête with heritage in the by lanes of Old Delhi

बीते वक़्त की एक मिसाल – हवेली धरमपुरा

शहरों को अक्सर आदत होती है सब कुछ निगल जाने की, और नया भूगोल बनाते हुए सबसे पहले वो अपना अतीत निगलते हैं। लेकिन कुछ ईंटे पुरानी बची रह जाती हैं, कुछ गलियां संभाल ली जाती हैं और कुछ पुराने आंगन भी वक़्त रहते या तो बचा लिए जाते हैं या फिर restore कर लिए जाते हैं। लेकिन वही ऐसा करते हैं जिन्हें बीते हुए दिनों की या तो कसक रह जाती है या फिर उस पुराने गौरव को लौटा लाने की बेचैनी होती है। चांदनी चौक में जाकर पुराने दिनों के बीतने-रीतने का दर्द अक्सर महसूसा है, लेकिन बीते महीने राहत पायी। एक पुरानी हवेली की भुरभुराती दीवारों को संभाल लेने की कशिश हवेली धरमपुरा के रूप में सामने है।

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High tea session at Lakhori restaurant inside Haveli

जामा मस्जिद के इर्द-गिर्द माह-ए-रमज़ान की रौनक को चीरते हुए हम गली गुलियान की तरफ बढ़ रहे थे। गलियों से गुजरते हुए, एक-एक कर कई पुरानी इमारतों को पार करते हुए एकाएक हवेली धरमपुरा के सामने पहुंचकर ठिठके थे। आसपास की दूसरी इमारतों के बीच इस रेस्टोर्ड हवेली को पहचानने के लिए निगाह आसमान तक उठानी होती है, वरना आप इसके सामने से भी गुज़र जाओगे बगैर यह जाने कि एक खास हवेली वहां है। मेरे ख्याल से रेस्टोरेशन का सौंदर्य भी इसी में है कि इस एक इमारत का outer facade भी आसपास की दूसरी इमारतों जैसा ही रखा गया है। अलबत्ता, दरवाज़ा लांघने की देर थी और एक दूसरे दौर में खुद को पाया हमने।

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Romance of an era gone by is recreated in the courtyard

आंगन पार करते हुए लाखोरी रेस्टॉरेंट है। छोटी-छोटी, पतली, गुजरे दौर की लाखौरी ईंटों के नाम पर बने रेस्टॉरेंट में अपनी थकान छोड़ने के बाद दरों-दीवारों को करीब से देखने हम पहली मंजिल पर पहुंच चुके थे।

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इतिहास के ज़र्द पन्नों से झांकती हवेली की मौजूदा शानो-शौकत

राज्यसभा सांसद विजय गोयल ने करीब दस बरस पहले इस हवेली को खरीदा था तब इस हवेली में एक या दो नहीं बल्कि 61 परिवार बसे थे। इन बाशिन्दों ने अपनी-अपनी जरूरत के मुताबिक जाने कितनी दीवारें हवेली के सीने पर तान दी थीं जिनसे असल दीवारें ढक गई थीं। हवेली को पुरानी शानोशौकत में लाने की मुहिम शुरू हुई तो इन बाद के निर्माणों को ढहाया गया, नीचे से जो मूल स्ट्रक्चर निकला उसे वैसे ही रखा गया। फूलों की कारीगरी वाले मूल खंभे और लाखौरी ईंटों की भव्यता को लाखौरी रेस्टॉरेंट में आज भी देखा जा सकता है।

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हेरिटेज फाउंडेशन के साथ मिलकर अगले आठ साल हवेली को उसका पुराना गौरव लौटाने का काम जारी रहा। आज वो गौरव लौटा है नई आधुनिक सुख-सुविधाओं के साथ। मसलन, ऊपरी मंजिलों पर जाने के लिए लिफ्ट है, यह अलग बात है कि हम तो उन्हीं सीढ़ीदार रास्तों से चढ़े थे जिनमें असल रोमांस छिपा होता है !

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हेरिटेज हवेली में रहने का खर्च (tariff)

हवेली में कुल जमा 13 गैस्ट रूम/स्वीट्स हैं। हेरिटेज ट्रैवलर्स के लिए दिल्ली शहर के सीने में छिपा एक खूबसूरत नगीना है हवेली धरमपुरा। डॉलर में भुगतान करना हो तो 9000/रु से 18000/रु हर दिन के खर्च पर उपलब्ध हवेली का शाहजहां स्वीट / झरोखा रूम / दीवान-ए-खास रूम कोई मंहगा नहीं लगता। स्टे के साथ हेरिटेज, पतंगबाजी और किसी शाम कत्थक का आयोजन पैकेज में हो तो मसला समझ आता है। बहरहाल, हम हिंदुस्तानी जमा-खर्च वाले मेहमानों के लिए टैरिफ यकीनन मंहगा ही गिना जाएगा।

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बीता वक्त न सही, उस दौर की कुछ यादें अब भी उसके बड़े से आंगन, उसकी सीढ़ियों, आलों और उसकी छत पर पड़ी हैं। जैसे पतंगबाजी के पेंच। और हां, सवेरे पड़ोस की छत पर कबूतरबाजी भी होती है। बाकी पुरानी दिल्ली की रौनक तो छत से कभी भी देखी जा सकती है।

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एक ज़माना गुज़रा है जिस हवेली के गिर्द से गुजर गई गली अनार से, उसी से होते हुए कभी इसमें दाखिल होने की हसरत सजाकर आना यहां। दरीबा को लांघकर या जामा मस्जिद का दीदार कर गली गुलियान पहुंचना अपने आप में एक खास अनुभव होता है। फिर हवेली में रहना किसी दूसरे दौर में उतर जाने का अहसास दिलाएगा। और वो वक्त कैसा हुआ करता था जब छतों से छतें मिली होती थीं, जब हर छत पर एक दुनिया आबाद हुआ करती थी, और यों आसपास बसे बाशिन्दे अपनी-अपनी छतों पर आकर किस आपसदारी का निबाह किया करते थे, उसका तसव्वुर करने के लिए तो हवेली धरमपुरा की तरफ आना बनता है।

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और हवेली धरमपुरा की छत पर सिमटती यादों के फ्रेमों में चुपके से जामा मस्जिद भी जगह पाती है।

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हवेली धरमपुरा पहुंचने के लिए जामा मस्जिद अहम् लैंडमार्क है। मस्जिद के गेट नंबर 3 से यही कोई 3-4 मिनट में पैदल हवेली तक पहुंचा जा सकता है। बस, यही याद रखना होता है हेरिटेज में तब्दील हो चुके ठिकानों को ठहरने के लिए चुनते हुए। ये कोर्इ् दिल्ली के दिल में खड़ा मेरिडियन या शांगरी ला नहीं है जिसके ऐन दरवाजे तक आपकी एंट्री गाड़ी से होगी। जामा मस्जिद पार्किंग पर गाड़ी खड़ी करें और चले जाएं उस भीड़-भाड़  (रौनक) को चीरते हुए जिसे पुरानी दिल्ली कहते हैं।

अगली बार जब मौका लगे अपने पुराने शहर से गुजरने का, जब शॉपिंग के बाद थकान उतारने का मन हो और एक अदद ठिकाने की तलाश हो तो इसी हवली के लाखोरी रेस्टॉरेंट में कुछ पल गुजार लेना।

2293, Gali Guliyan, Dharampura, Delhi-6

Tel.: 011-23261000, 011-23263000

E-mail: info@havelidharampura.com reservations@havelidharampura.com

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