कैरावैन में सिमट आयी है चलती-फिरती दुनिया
ज़रा कल्पना करें अगला वैकेशन ऐसा हो जिसमें अपनी मर्जी से किसी कुदरती नज़ारे को देर तलक देखते चले जाने के लिए आप अपना चलता-फिरता घर किसी नदी-झील के किनारे रोक सकें। चट्टानों की काया पर उग आयी घास-पत्तियों को सहलाते हुए, किसी झरने के पानी में पैर डुबोकर बैठे रहें, वहीं खाना-पीना भी हो जाए, फिर एक छोटी-सी झपकी या मनपसंद खेल खेलने, मूवी देखने का मौका भी मिल जाए। यह निरी कल्पना नहीं है और न ही ऐसे अंदाज़ में छुटि्टयां बिताने के लिए आपको विदेश जाने की जरूरत है। ‘स्वदेश’ फिल्म के शाहरूख खान स्टाइल में आप भी निकल पड़िए कैरावैन में सैर-सपाटे पर!
अगर मंजिलों से ज्यादा रास्तों से है प्यार
पर्यटन की दुनिया में धीरे-धीरे सही, कैरावैनों की पैठ बढ़ रही है। पर्यटन बोर्डों के पास बेशक, ऐसी चलती-फिरती लग्ज़री के नाम पर बहुत ज्यादा वाहन नहीं हैं लेकिन प्राइवेट टूर आपरेटर नए दौर के यात्रियों के लिए इन्हें उपलब्ध करा रहे हैं। इनोवा जैसी बड़ी गाड़ियों से लेकर टैम्पो ट्रैवलर, बस, मर्सीडीज़, लिमो तक को कैरावैन में ढालना अब दूर की कौड़ी नहीं रही है। आपकी जेबों में रुपयों की खनक है, घरों के बाहर इन बड़े वाहनों को खड़ा करने की जगह भी और जब-तब सड़कों को नापने की जिद तो अपना खुद का कैरावैन भी खरीदा जा सकता है।
बेंगलुरु के कारोबारी रमेश अमृतराज ने कई साल एक टैम्पो ट्रैवलर को अपने हिसाब से कस्टमाइज़ करवाया, उसमें टीनेजर बच्चों के सोने-रहने के हिसाब से व्यवस्था करवायी और फिर एक दिन निकल पड़े दक्षिण से धुर उत्तर तक की घुमक्कड़ी के लिए। लगभग पूरे देश को नापते हुए उन्होंने लद्दाख में पनामिक तक की दूरी अपने इसी कैरावैन में नापी थी। वे कहते हैं, ”मुझे घर लौटने की जल्दी नहीं थी क्योंकि घर और उसका साजो-सामान तो मेरे साथ ही चल रहा था। हम रात में किसी होटल में इसे खड़ा करते थे ताकि बच्चों के साथ सुरक्षित तरीके से रह सकें। पानी की सप्लाई हम होटलों से ही लेते थे, बीच-बीच में इसकी साफ-सफाई भी जरूरी है। लेकिन कुल-मिलाकर, यह अनुभव लाजवाब रहा, मैं और मेरी पत्नी बारी-बारी से इसे चलाते थे, बच्चे लेटकर-बैठकर, कभी कैरम खेलकर तो कभी कॉमिक्स में डूबे रहकर इस सफर का पूरा मज़ा लेते रहे। हमारे इस चलते-फिरते घर को देखकर कई बार लोग रास्ते में अचरज भी किया करते थे। कई बार तो किसी देहात से गुजरते हुए हमें रुकवाकर लोगों ने अंदर आकर हमारे इस चलते-फिरते घर को देखने की मंशा भी जाहिर की थी। कुछ हमारी हिम्मत की दाद देते थे तो कुछ के लिए हम अजूबा ही थे!”
पिकनिक से तीर्थ तक
कितने ही लोगों का सपना होता है अपने घर के बड़े-बूढ़ों को तीर्थ कराने का लेकिन बसों-रेलों में उन्हें ले जाना बहुत तकलीफदेह साबित हो सकता है। यहां तक कि कुछ बुजुर्ग घर से हवाईअड्डे तक का सफर करने से परहेज़ करते हैं। ऐसे बुजुर्गों को घरों से ही कैरावैन की सुविधा मिल जाए तो वे आसानी से हरिद्वार-ऋषिकेश से लेकर बदरीनाथ तक के दर्शन करके आ सकते हैं। इसी तरह, छोटे बच्चों को कैरावैन में लेकर निकलना उन्हें पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लेकर जाने के मुकाबले कहीं ज्यादा सुविधाजनक साबित होता है। आपकी निजी कार से ज्यादा लैगरूम, ज्यादा सुविधाएं, चलते-फिरते हुए टॉयलेट-बाथरूम की सुविधा, घर जैसा बिस्तर, म्युज़िक सिस्टम, टीवी, पकाने के लिए माइक्रोवेव, पर्सनल एंटरटेनमेंट सिस्टम … कैरावैन के कस्टमाइज़ेशन की कोई सीमा नहीं है।
जैसी जरूरत, वैसा वाहन तैयार हो सकता है। BABBARAJU MOBILE के मालिक राजू बब्बर बब्बर कहते हैं, ”हम एक भी कैरावैन ग्राहक के साथ बैठकर, उनकी जरूरतों को समझे बगैर नहीं बनाते। स्टैंडर्ड कैरावैन जैसा कुछ नहीं होता। हर ग्राहक की अपनी जरूरत, प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर इन्हें तैयार किया जाता है।”
चुनावी अभियानों के लिए कैरावैन बेहद कारगर साबित होते आए हैं। इसीलिए तो चुनावी दौड़ में कूदने वाले उम्मीदवार अब कार-जीप छोड़कर कस्टमाइज़्ड कैरावैन इस्तेमाल करने लगे हैं। इनमें नेताजी के नहाने-सोने, कॉन्फ्रेंसिंग की व्यवस्था के अलावा एक बहुत दिलचस्प सुविधा को जोड़ा जाता है। वाहन के पिछले हिस्से में एक छोटा प्लेटफार्म है जिस पर खड़े होकर एक बटन दबाते ही आपको एक लिफ्ट उपर ले जाती है।
चुटकियों में कैरावैन की छत खुलती है और नेतीजी का पोडियम छत के रास्ते बाहर निकल आता है। यानी कहीं भी, कभी भी जनता—जनार्दन को संबोधित करने के लिए मंच तैयार। और तो और इस कैरावैन में एक पब्लिक एड्रैस सिस्टम भी लगा होता है। और इस तरह, राजनीति की सड़कों पर दौड़ते कारवां में शामिल हो जाता है नेताजी का चलता-फिरता निजी आॅफिस-कम-होम।
इन लग्ज़री ट्रैवलर वाहनों की कीमत 28 लाख से 55 लाख रु तक है।
और चाहें तो मध्य प्रदेश टूरिज़्म से किराए पर ले लें अपना चलता-फिरता आशियाना। ये रहा रेट कार्ड
मध्य प्रदेश के अलावा तीन और राज्य हैं जो कैरावैन टूरिज़्म कराते हैं। जानने के लिए बस थोड़ा इंतज़ार और करें। अगली कड़ी में और विस्तार से इस की जानकारी ला रही हूं।
Enjoy the teaser before my full story in upcoming Sunday edition of दैनिक ट्रिब्यून