मुलाकात विश्व धरोहर के साथ
हिंदुस्तान की तमाम विश्व धरोहरों को छू आने का अभियान आसान नहीं है। कुल जमा 365 दिनों में पूरे 32 मुकाम पार करने हैं। मैदानों से समंदर तक, लहरों से बुलंदियों तक, किलों और स्मारकों से जंगलों तक। और जंगल भी बस साधारण जंगल नहीं, सुदूर नॉर्थ ईस्ट में काज़ीरंगा जैसे जंगल से लेकर बंगाल के सुंदरवन तक।
GoUnesco के अभियान का हिस्सा बनने के लिए शर्त थी जनवरी से दिसंबर तक इन 32 मंजिलों को छूने की, लिहाज़ा 2015 में जो सफर किए, जिन मंजिलों तक हो आयी उनकी गिनती अब भूलनी होगी। बहरहाल, जिन्हें हेरिटेज से इश्क हो उनके लिए किसी मंजिल पर एक-दो नहीं कई-कई बार जाने के बहाने कभी भारी नहीं पड़ते।
और जिस सफर के पड़ाव भीमबेटका जैसी गुफाएं हों, जो मुझे लगता है हम इंसानों की शुरूआती #Facebook थी, उसे हमेशा कौन जारी नहीं रखना चाहेगा?
पिछले साल सितंबर में जब अभियान का ऐलान किया था तो जर्नलिस्टों, हिस्टॉरियन्स, आर्कियोलॉजिस्टों और कुछ स्पॉन्सर पार्टनर्स से जुड़ने की बात ज़ेहन में थी। बीते महीनों में न सिर्फ इरादों को मजबूत होते महसूस किया बल्कि कितने ही हाथ अपनी तरफ बढ़े पाए, इतिहासकारों की हैंडहोल्डिंग हो, एएसआई के आर्कियोलॉजिस्टों का मार्गदर्शन और कुछ दमदार ब्रांड्स की तरफ से मिल रहे लॉजिस्टिकल सपोर्ट तो भला कौन इस देश के सिरों को नहीं नाप सकेगा।
Madhya Pradesh में तीसरी विश्व धरोहर के रूप में मौजूद हैं खजुराहो के मंदिर (Khajuraho Group of Temples) । जब 2016 में विधिवत् रूप से अपने अभियान की शुरूआत की तो सबसे पहले इन मंदिर समूहों को ही देखने पहुंच गई। और इस बार अकेली नहीं थी बल्कि जानी-मानी इतिहासकार, लेखक और एक उम्दा शख्सियत Rana Safvi मेरे साथ थीं।
वो इस अभियान से अभिभूत थीं और मेरे साथ देश के एक नहीं बल्कि और भी कई विश्व धरोहर स्मारकों को खंगालने-टटोलने का वायदा कर चुकी हैं। यकीनन, इस अभियान में मेरी पहली ‘कमाई’ है उनके वो साथ चलते कदम जो हर मोड़ पर इतिहास के किस्से-कहानियों से मेरा मार्गदर्शन करते हैं ।
कुछ बातें सफर के बारे में मेरे इरादों की
हिंदुस्तान की 32 #WorldHeritageSites तक की दूरी 365 दिनों में नापने भर से कोई रिकॉर्ड मेरे नाम नहीं होने जा रहा। मुझसे पहले भी कुछ लोग ऐसा कर चुके हैं, कुछ आधे से ज्यादा तक होकर आ चुके हैं और कितने ही आगे भी ऐसा करते रहेंगे।
मेरा कोई सफर किसी रिकार्ड के लिए कभी नहीं था। वो सब मेरे अपने मन को मनाने के जतन रहे हैं और आगे भी जब-जब मन जहां-जहां दौड़ता-दौड़ाता रहेगा, मैं दौड़ती रहूंगी।
जैसा कि मैंने कहा, मेरा यह अभियान किसी सोची-समझी योजना के तहत् शुरू नहीं हुआ, बस सांची और भीमबेटका जाना हुआ, मन में कहीं ख्याल आया और फैसला कर डाला कि अपने देश की विरासत को करीब से जानने-समझने के लिए इतना तो कर ही सकती हूं।
#MyheritageTrails की योजना आगे क्या रूप लेगी
किसी स्मारक के सामने अपनी फोटो खिंचवा भर लेना मेरे अभियान का मकसद कतई नहीं हो सकता। आर्कियोलॉजिस्ट, हिस्टॉरियन, जर्नलिस्ट, राइटर, ब्लॉगर, ट्रैवलर, टीचर, प्रोफेसर मेरी इन यात्राओं के संगी-साथी रहेंगे। कोई भी, कहीं भी जुड़ जाएगा, अपनी सहूलियत के मुताबिक। मुझे उन स्थलों के बारे में वो बताने जो #Google (Yes, I am going to challenge you this time!) कभी नहीं बताता, उन स्मारकों के पत्थरों के नीचे फॉसिल बन चुकी उन कहानियों को सुनाने जिन्हें अमूमन कोई नहीं सुनता। अक्सर यही तो करते हैं आप और हम, बस जाते हैं ऐतिहासिक स्मारकों तक, एक फेरा लगाकर लौट आते हैं। हो गई सैर, हो गया पर्यटन।
किसी इतिहासकार के साथ हंपी की हेरिटेज वॉक का इरादा है तो किसी पुरातत्ववेत्ता (ex ASI archaeologist) ने भीमबेटका की गुफाओं को फिर से, उनके साथ हेरिटेज वॉक के बहाने नए सिरे से देखने का न्योता भेजा है। मेरे अजीज़ ट्रैवल ब्लॉगर्स भी साथ आने को तैयार हैं, कोई वैली आॅफ फ्लॉवर में साथ ट्रैक करेगा (गी) और किसी के साथ सुंदरवन की दलदली जमीन देखने की योजना है।
अक्सर अपने बैकयार्ड को कमतर कर आंकते हैं हम, लिहाज़ा हमने अपने ऐतिहासिक शहर यानी दिल्ली के सीने पर खड़े विश्व धरोहर स्मारकों में भी कुछ वक़्त गुज़ारा। बीते महीनों में यही कुछ किया।
और फिर हम पहुंच गए दारा शिकोह और रानादिल की त्रासद प्रेम कहानी सुनने के बहाने हुमायूं के मकबरे पर।
अरे हां, वैली आॅफ फ्लावर (planned in July 16 ) से पहले तो महाराष्ट्र (planned in June-July 16) पहुंचना है, वेस्टर्न घाट से होते हुए ऐतिहासिक छत्रपति शिवाजी स्टेशन में हेरिटेज वॉक करनी है। इसी बहाने अपने देश में रेलवे के शुरूआती सफर से लेकर अब तक की उसकी दौड़ को समझने में आसानी होगी। और जानते हैं, इस के लिए हम भारतीय रेलवे का दामन थामने जा रहे हैं।
वेस्टर्न घाट पर सहयाद्रि के घने जंगलों, चोटियों-पहाड़ियों की गोद से होते हुए जाने कितनी ही सर्पीली सड़कें कहां से कहां गुज़र जाती हैं। बस और बीस दिनों में इन्हीं घुमावदार सड़कों पर से गुजरना है, सैल्फ ड्राइव करेंगे वेस्टर्न घाट पर से दौड़ती पतली-संकरी, पहाड़ी यानी कुल-मिलाकर रोमांटिक सड़कों पर। महाराष्ट्र का ये हिस्सा अक्सर मानसूनी गोवा के जिक्र के सामने कमज़ोर पड़ जाता है। लेकिन हमें इस बार इसके साथ न्याय करना है, उन तमाम झीलों, तालाबों, पठारों, गुफाओं, गुफा मंदिरों से होते हुए भंडारदरा (Bhandardara) में जुगनुओं की महफिल का हिस्सा बनना है। जानते हैं न यहां लगता है Firefly Festival, चलेंगे क्या?
और फिर अजंता-ऐलोरा की गुफाएं, होंगी, मुंबई का वो स्टेशन होगा जहां जिंदगी सिर्फ फर्राटा होती है। हम उसी रफ्तार में गुम हो गई अपनी विरासत से मिलेंगे।
दिल्ली लौटेंगे खास धरोहर से मिलने के लिए। उत्तराखंड में फूलों की घाटी और नंदा देवी नेशनल पार्क अगली मंजिल बनेगा। दार्जिलिंग में माउंटेन रेलवे का सफर करेंगे, सबसे उंंचे रेलवे स्टेशन यानी घूम चलेंगे। लौटेंगे, फिर-फिर अगली मंजिल पर चल देने के लिए। पश्चिम से उत्तर, उत्तर से पूरब और साल के आखिर में दक्षिण की विश्व धरोहर मंजिलों से मिलने।
अभियान के बहाने — हिंदुस्तान का सफर
कुछ मंजिलों पर साथ होगा, कुछ पर अकेले ही जाना है। एक मकसद है उस अहसास को भी जीना जो #SoloWomanTraveler की मानसिक तैयारियों को प्रेरित करते हैं। एक इरादा है उन मुगालतों को तोड़ने का जो हिंदुस्तान में औरत के अकेले सड़क पर गुजरने को या तो बेचारगी मानते हैं या बदचलनी। और कहीं न कहीं उन बारीक अनुभवों को पकड़ना है जो अपने ही देश की सड़कों पर से अकेले गुजर जाने पर हमेशा के लिए हमारे साथ हो लेते हैं।
हिंदुस्तान जितना विशाल है उसी विशालता को जीना है इस अभियान के बहाने। अकेले शुरू करने के बावजूद जब जो साथ आता रहेगा, उसके साथ कदमताल करती रहूंगी।
कितना होगा सफर
I will maintain a log and share detail
दिल्ली से खजुराहो के सफर में आने-जाने में पूरे 1320 किलोमीटर का रास्ता नाप चुकी हूं। कुल जमा 4 दिन लगे और पैसा खर्च हुआ 10,000/रु से भी कम।। मेरे ख्याल से आगे का सफर कितना रोमांचक, कितना एडवेंचरस और कितना दिलचस्प होने जा रहा है, इसकी झलक देने के लिए बस ये दो-तीन आंकड़े काफी हैं।
अभी से लंबा-चौड़ा गणित नहीं करना, ये रहा का लिंक #WorldHeritageIndia (http://asi.nic.in/asi_monu_whs.asp) आपको जोड़-घटा का शौक हो तो कर डालो, अपुन तो बढ़ेंगे अपनी ही मस्ती में। गणित यों भी कमजोर कड़ी रहा है हमारी, अब भी रह जाए, कोई तकलीफ नहीं।
क्या रहेंगे आने–जाने के साधन
Rail, Road and Airways .. and waterways
सफर वही होता है जिसमें कोई ज्यादा चहारदीवारी न खिंची हो। मतलब कहीं कोई दबाव नहीं, सीमा नहीं, पूर्व शर्तें नहीं, नियम नहीं .. अलबत्ता, ज्यादा सफर ट्रेन की पटरियों और अपने हिंदुस्तान के सीने पर से गुजरती सड़कों पर से होकर गुजरेगा वो इसलिए कि मैं रोड ट्रिप की दीवानी हूं। सच्ची बताउं, इतना भूगोल और हिस्ट्री तो स्कूल में भी नहीं सीखा था जितना इन सड़कों से सीखा है। और वैसे, हवा से बातें भी कर लेंगे कभी-कभार। जेब की हैसियत और समय की किल्लत जब-जब किसी हवाई जहाज़ का रास्ता दिखा देगी, हम उस तरफ हो लेंगे। कोई परहेज़ नहीं है!
क्या होगा विश्व धरोहरों की गहन पड़ताल से जमा हुई कहानियों का
A Book in the making
अगले 365 दिनों तक अपने अनुभवों को, किस्सों को, कहानियों को, घटनाओं को, तथ्यों को और बहुत कुछ को आप सभी के साथ सोशल मीडिया – blog, facebook timeline (follow me – https://www.facebook.com/alkakaushik19), twitter (@lyfintransit) Instagram (lyfintransit) पर बांटती रहूंगी। अभियान की खबरों, किस्सों को शेयर करने के लिए हैशटैग (#MyheritageTrails) का इस्तेमाल कर रही हूं, आपसे भी अनुरोध हैं हिंदुस्तान की विरासत को दुनियाभर में लोकप्रिय बनाने के लिए इस हैशटैग को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
अखबारों में विश्व धरोहरों के बारे में लिखूंगी, इसके लिए संपादकों से संपर्क कर रही हूं। कहीं कोई नियमित कॉलम के रूप में हमारे विरासत की इबारत को छापने पर राज़ी हो जाएगा तो शायद मेरे इस अभियान की सार्थकता होगी। वरना, यात्रा वृत्तांतों की शक्ल में अपने देश की समृद्ध विरासत पर बातें करती रहूंगी। और जब पूरी 32 मंजिलों को नाप लूंगी तो अपनी मुट्ठी में बंद हुए उन सैंकड़ों किस्सों-कहानियों को एक किताब की शक्ल जल्द से जल्द दूंगी जो मुझे इस देश की मिट्टी में यहां-वहां बिखरे मिले होंगे। आप ही की तरह मुझे भी उस किताब का इंतज़ार है, अभी इसी पल से ….
अभियान का लॉजिस्टिक्स पक्ष
sponsorships/collaborations is the way forward
इस महत्वाकांक्षी अभियान को अकेले अपने दम पर पूरा करने का दंभ मुझे छू भी नहीं सकता। इतिहासकारों, लेखकों, प्रोफेसरों, पत्रकारों, आर्कियोलॉजिस्टों के अलावा भारतीय रेलवे से लेकर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया, विभिन्न राज्यों के टूरिज़्म बोर्ड, होटल और रेसोर्ट, ट्रैवल कंपनियां, टूर आॅपरेटर, आॅटो कंपनियां इस अभियान का अहम् हिस्सा होंगे। सोशल मीडिया पर इस अभियान के ऐलान के बाद से ही कई एजेंसियों/प्रोफेशनल्स से मेरे इस अभियान का हिस्सा बनने के लिए हाथ बढ़ाया है।
लेकिन यह तय है कि यह अभियान किसी क्षुद्र कमर्शियल हित को साधने का जरिया नहीं है। यह विशुद्ध एकेडमिक अभियान है जो मुझे मेरे देश की संस्कृति और इतिहास से जोड़ेगा, जो इसके बहाने मेरे जैसे सैंकड़ों हिंदुस्तानियों को, और खासतौर से युवाओं को अपनी महान परंपराओं पर गर्वबोध करना सिखाएगा (I am reaching out to schools, colleges to share my experiences post this ambitious campaigns with students).
यह अभियान है हिंदुस्तान को एक नए नज़रिए से जानने का, आप जुड़ सकते हैं, अपने विचार बांट सकते हैं, आपकी सलाह मेरे लिए महत्वपूर्ण होगी।