चिमनियों के शहर में
खुर्जा से दोबारा वास्ता बना था करीब डेढ़ दशक बाद। पहली बार जब देखा तो सिर्फ शॉपिंग के अड्डे के तौर पर, जहां से सस्ते में ढेरों सामान खरीद लायी थी – सेरेमिक पॉट्स से लेकर सूप बोल्स, प्लेटें, कॉफी मग, कप, टी-पॉट और भी जाने क्या-क्या।
फिर वक़्त की बेरहमी के चलते भूल गई सब। और इन सालों में गमलों में उगे पौधों ने जाने कितनी बार पतझड़ झेला, बसंत में बहके, सर्दी में सहमे और गर्मी में किसी तरह खुद की हस्ती को संभाले रहे। कुछ टूट फूट गए और साल-दर-साल किचन भी खुर्जा पॉटरी से महरूम होती रही। तो वाकई अब समय था दूसरे ट्रिप का।
बीते दिनों बुलंदशहर जब नेशनल मीडिया में बदनामी कमा रहा था हम ऐन उसके दो रोज़ बाद NH91 पर से फर्राटा गुजर गए थे। हमारी मंजिल थी खुरचन और सेरेमिक पॉटरी के लिए मशहूर खुर्जा नगरी। एहतियात बरतने के संदेशों ने थोड़ा भरमाया जरूर था, लेकिन पॉटरी शॉपिंग का एजेंडा सब पर भारी पड़ा।
और ये रहा बेरूमानी यूपी का रूमानी हाइवे
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में पहुंचने के लिए दिल्ली-गाजियाबाद- ग्रेटर नोएडा होते हुए एनएच 91 पर बढ़ चले थे हम। सिकंद्राबाद पार करते-कराते काली घटा ने जो घेरा उसका बयान नामुमकिन है। और इस तरह खुर्जा का सफर भी बिन चाहे मानसून पर्यटन का हिस्सा बन गया। पश्चिम के बाद पूरब और दक्षिण होते हुए अपने उत्तर भारत में बादलों के पीछे-पीछे दौड़ने का सपना पूरा हो रहा था। और अपनी किस्मत पर सिर्फ इतराया जा सकता था।
हाइवे पार हुआ तो चिमनियों के शहर में हमने दस्तक दी।
सेरेमिक पॉटरी के शहर में थे इसका पता शहर के कूड़ेदान दे रहे थे
खुर्जा शहर के पॉटर्स हब बनने के पीछे एक मशहूर दास्तान है कि करीब छह सौ बरस पहले तैमूर की सेना के कुछ घायल सैनिक यहां रुक गए थे। इन सैनिकों में फारस, अफ्गानिस्तान, तुर्की जैसे जाने कितने ही देशों के कुम्हार शामिल थे। वो क्या रुके इस इलाके में कि इसे अपने शिल्प से रंग दिया। मिट्टी को चिमनियों में पकाकर, रंगकर, हाथों की कारीगरी से बर्तन बनाए जाने लगे। आज तलक उनके ही वारिस हैं जो यहां के पठान मुहल्ले और फूटा दरवाज़ा मुहल्ले जैसे इलाकों को आबाद किए हैं।
एक से एक गज़ब रंगों से भरे पॉटरी एंपोरियम खुर्जा में बिखरे हैं, और उन रंगों की जादूगरी करने वाले हाथ खुर्जा के मुहल्लों में फैले हैं।
और चाय-कॉफी से इश्क हो तो खुर्जा को कैसे कोई भूल सकता है
शहरों के अप-मार्केट शोरूमों के पॉटरी सैक्शन में जो सामान बिकता है उसे 1/10वें दाम में खरीदना हो तो इस ठिकाने को याद रखना।
सुनते हैं कि खुर्जा की पॉटरी विदेशों के एंपोरियमों से लेकर आम-खास लोगों के घरों, दफ्तरों, महलों, भव्य होटलों तक में पैठ बना चुकी है। अपने ही शहर के शोरूमों में देख लो, देशभर के होटलों में जिस क्रॉकरी को देखकर आंखे चमकती हैं वो सब खुर्जा की किसी भट्टी से ही निकली होती हैं।
दिल्ली हाट से लेकर पांच सितारा होटलों के रिसेप्शनों तक, यूरोप के घरों में और मेरे घर में भी इन उम्दा नमूनों को पनाह मिलती आयी है। अपने ही बैकयार्ड के शिल्प को नज़रंदाज़ करने का घोर अपराध अब और नहीं। आइये, हैरड्स की बजाय खुर्जा से खरीदें क्रॉकरी।
चिमनियों और भट्टियों ने जो बदनामी इस शहर को दिलायी है उसे आॅफसेट करने की कोशिश भी दिखी इस बार सड़कों पर।
ई-रिक्शाओं ने खुर्जा शहर को जो आधुनिकता का जामा पहनाया है, उसे देखना सुकून से भर जाता है।
एक हेरिटेज टूर का विषय है खुर्जा, एक आर्ट सीन है खुर्जा, एक क्राफ्ट बाज़ार है खुर्जा और हम ही इस दौलत से बेपरवाह हैं।
खुर्जा जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश दिल्ली-गाजियाबाद बॉर्डर से दूरी — करीब 90 किलोमीटर