वेजीटेरियन दिल की दास्तान
ज़ीज़ो (ZIZO) की उस शाम ने आने से पहले मुझे पसोपेश में डाला था, फिर थोड़ा भरमाया, कुछ लुभाया और बीत जाने के बाद हैरत में डाल दिया। मुझ सफरबाज की जिंदगी में घर से बाहर के खाने के मौके इतने होते हैं कि अपने शहर में रेस्टॉरेंट और कैफे से जी-भरकर दूर रहती हूं। लेकिन इधर बीते कुछ महीनों में इन वर्जनाओं को तोड़ने की एक ख्वाहिश सी जगी है, Zizo ने मुझ reluctant foodie को एक मौका थमाया, खान-पान की अरबी संस्कृति और मेडिटेरियन फूड से मिलवाने का लालच जगाया और उस शाम ने मुझे अपने से ही एक वायदा कराया। वायदा यह कि अब जब-जब सफर नहीं होगा तब-तब होगा खान-पान के साथ याराना!
तो आज चलें लेबनीज़ फूड की गलियों में ..
खानपान दरअसल, हर तर्क से परे है, क्योंकि यह रिवायत का हिस्सा है, संस्कार है, संस्कृति है, परंपरा है और इसीलिए पहचान से जुड़ा मामला है।
Zizo का बटाटा हरा चखते ही इस ख्याल से आप जुदा नहीं हो सकते कि बेशक, आलू का व्यंजन है मगर उसका संस्कार पहाड़ी आलू गुटके या महाराष्ट्रियन वड़ा पाव के स्वाद से कहीं फर्क है। यही तो है पहचान का मामला।
रेस्टॉरेंट मुझे मैकेनिकल लगते हैं, बेहद मशीनी। जहां सर्विस मिलती है और यादों के पिटारे अब कम ही खुलते हैं। क्योंकि यार-दोस्तों की संगत में बेशक हम वहां होते हैं मगर अपनी-अपनी स्क्रीनों में सिर घुसाए हुए। मगर जीज़ो आपको बचपन की गलियों में लौटाता है। जानते हैं कैसे ? इसके नाम से खेलिए कुछ देर, उसका मतलब तलाशने की कोशिश कीजिए और आप पहुंच जाएंगे बचपन के अपने उस पार्क में जहां अंधेरा घिरते ही जुगनुओं की रेल-पेल दिखने लगती थी। ‘थी’ यानी ‘थी’। अब कहां वो फ़कत फुर्सत, कहां वो जुगनू ..
जीज़ो दरअसल, एक लेबनीज़ beetle है और उन उड़ते पतंगों के पीछे दौड़ते बचपन की यादों को समेटने की खातिर — उन मासूम दिनों को फिर से तरोताज़ा कर लेने की गरज से Abdel Malek, CEO & Partner ने ZIZO को साकार किया। इस तरह लेबनीज़ beetle ZIZO हमारी दिल्ली के culinary landscape में उतर आया है।
ZIZO में मेरा मनपसंद क्या है जानना चाहेंगे? इसके पहले फ्लोर के हॉल का एक कोना। इसी तल पर है कम रोशनी में ज्यादा दिलकश सीटिंग वाला एक मिनी हॉल जिसमें खान-पान की एक अजब परंपरा को पोसा जाता है। यहां बैठकर आप तसल्ली से देख सकते हैं फूड के इर्द-गिर्द बनी फिल्में, फिल्मों से दिल भर जाए तो किसी फ्राइडे यहां Belly dancer से मिलने चले आइये। लुभावनी सीटिंग, किताबें, फिल्में, डांस और उम्दा मेडिटेरियन फ्लेवर में रचा-बसा लेबनीज़ फूड। आपके ख्यालों में कुछ और रह सकता है?
शाम जब किसी के इंतज़ार में गुजारनी हो तो इन रंगीनियों के साथ गुजारी जा सकती हैं। सुरूर और खुमारी में खोने का सबब आपके पास हो तो एक क्या कई शामें ZIZO के नाम की जा सकती हैं
और हमारे वाले पसंदीदा कोने तक गुजरने का रास्ता इस खूबसूरत मोड़ से होकर गुजरता है।
मुगालतों को दूर करने की शाम
वेजीटेरियन होने के नाते एक उस दौर से भी गुजरी हूं जब बाहर खाने-पीने के विकल्प कम हुआ करते थे, ले-देकर पंजाबी, साउथ-इंडियन प्लैटर तक सीमित हुआ करते थे। शायद यही वजह है कि घर से बाहर खाने के लिए निकलना मेरी आवारा जिंदगी का एजेंडा कभी नहीं रहा। लेकिन लेबनीज़, इटालियन, थाइ, कोरियाई, फ्रैंच culinary traditions में हमें इतनी तवज्जो मिलती होगी, इसका अंदाज़ा नहीं था। ZIZO ने कुछ भरम हटाए, कुछ मुगालतों से हमें आज़ाद किया। herbs, salads, veg Pizza की इतनी वैरायटी कि हमने एक और शाम इसके नाम जल्द करने का वायदा खुद से कर डाला।
अब वेजीटेरियन प्लैटर का जलवा ये हो लौट-लौटकर आने से किसे इंकार होगा!
वो शाम फिसलती जा रही थी, हमें अपनी यादों को सीलबंद करने का एक मीठा बहाना दिया Kunafa ने। और बस, हम लौट आए, फिर लौटने के लिए।
आज है ZIZO से दोबारा मिलने का वायदा। आ रहे हैं आप? हम मिलेंगे एक जादुई शाम के साथ, अपने उसी कोने में जो बस गया है दिल के एक कोने में !
Images courtesy – ZIZO (except where mentioned otherwise)