Experience the the grandeur of heritage railway
यात्राएं आधुनिक जीवन में जरूरी-सी बनती जा रही हैं। बिज़नेस ट्रिप हो या सैर-सपाटे के नाम पर अक्सर हड़बड़ी वाला सफर आपको सस्ती एयरलाइंस की तरफ मोड़ देता है। घंटे-दो घंटे में अपने शहर से दूर, किसी दूसरी ही फिज़ा में पहुंचना तत्काल सुकून बेशक देता है लेकिन तुरत-फुरत वाली यात्राओं ने आपसे वो छीन लिया है जिसमें असल रोमांस छिपा होता था। हौले-हौले मंज़िल तक बढ़ती छुक-छुक गाड़ी, भाप के इंजन से पीछे खिंचे आते डिब्बे, डिब्बों से झांकते मुस्कुराते चेहरे और खूब सारी फुर्सत।
किस हवाई जहाज़ के सफर में मूंगफली या पॉपकॉर्न चबाया था आपने आखिरी दफा, याद है? और खिड़की से बाहर कितनी देर झांक पाए थे अपनी बिज़नेस क्लास वाली सीट से? सिवाय सोने के, बोर होने के, इन-फ्लाइट मैगज़ीन के बासी पन्नों को पलटने के और क्या किया था? साथ वाली सीट पर बैठे जनाब से कब उनके दिल का हाल जाना था? रफ्तार ने यात्राओं से इंतज़ार छीना है, मंजिलों तक पहुंचने की बेताबी सोख ली है और सफर को सिर्फ एक बिंदु से दूसरी बिंदु तक पहुंचने का नाम बनाकर छोड़ दिया है।
लेकिन जिन्हें धीमे सफर की लत लगी हो वो उन रास्तों को तलाश ही लेते हैं जिस पर वक़्त दौड़ता नहीं सरकता है और जिंदगी भी भागती नहीं है, उसे जिया जाता है। हल्के-हल्के कश की तरह… जैसे ये वाला भाप का इंजन सरकता है, हौले-हौले
नैरो गेज पटरियों पर 1881 से दौड़ती आ रही दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे को, जिसे प्यार से ‘टॉय ट्रेन’ भी कहा जाता है, यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा (Unesco World Heritage) दिया है। दार्जिलिंग के पहाड़ी इलाकों को पश्चिम बंगाल के मैदानी भागों से जोड़ने वाली इस ट्रेन में बेशक, अब डीज़ल इंजन भी लग चुके हैं लेकिन कुछेक में आज भी पुराने भाप के इंजनों को ही जोता जाता है, खासतौर से टॉय ट्रेन में। और इस छुक-छुक गाड़ी की मंथर चाल का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि किसी-किसी वक्त रास्ते में चलते-जाते लोकल इसमें कहीं भी चढ़ते-उतरते दिख जाते हैं।
टॉय ट्रेन की सवारी — दार्जिलिंग से घूम और वापिस 1 घंटा / 16 किलोमीटर
दिन में कुल जमा चार ट्रिप दार्जिलिंग से घूम और वापसी के होते हैं, दो सवेरे और दो दोपहर में। छुक-छुक गाड़ी 16 किलोमीटर का आने-जाने का फासला 2 घंटे में नापती है।
दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर टॉय ट्रेन का टिकट बनवाना आपको 19वीं सदी में पहुंचने का अहसास दिलाने के लिए काफी होता है। हालांकि टूरिस्ट सीज़न में आॅनलाइन एडवांस टिकट खरीदने में ही समझदारी है क्योंकि दार्जिलिंग आने वाला हर पर्यटक इस खिलौना गाड़ी की सवारी करना चाहता है, लेकिन आॅफ-सीज़न में, खासतौर से बरसात के मौसम में जबकि यात्रियों का बहुत जमघट दार्जिलिंग हिल्स पर नहीं होता उस समय स्टेशन से टिकट खरीदने के रोमांस से नहीं चूकना चाहिए। वैसे इस रेलगाड़ी की लोकप्रियता के चलते ऐसा करना ‘रिस्क’ लेने से कम नहीं होता।
खुद इंजन भी जल्दी-जल्दी ‘थक’ जाता है, फिर इसे ‘प्यास’ भी सताती है। दार्जिलिंग से चलकर महज़ दस मिनट में ही हमारे भाप के इंजन ने पूरे 10-15 मिनट का ब्रेक लिया पानी भरने के लिए। आह, वो गुज़रा ज़माना जैसे इन नन्ही पटरियों पर साकार हो गया था।
और यह ‘वॉटर ब्रेक’ रेल सवारों को मौका देता है फोटो उतारने का, नीचे उतरकर पानी डकारते इंजन को करीब से देखने का, ‘कोल मैन’ से मिलने का। जी हां, ‘कोल मैन’, सही सुना आपने। पूरे रास्ते वही तो है जो इंजन के साथ मेहनत करता है, दार्जिलिंग से घूम तक की चढ़ाई वाले रास्ते में उसके पेट में लगातार ‘खाना’ (कोयला) भरता चलता है।
और एक बार फिर टॉय ट्रेन तैयार होती है सड़कों पर दौड़ लगाने के लिए। दार्जिलिंग से कुर्सियांग जाने की जिस सड़क पर कार-जीप गुजरती हैं उसी के किनारे इस हेरिटेज ट्रेन की पटरियां भी दौड़ती हैं। कभी सड़क की बायीं तो कभी दायीं तरफ इन पटरियों को चाल बदलते देखा जा सकता है। और सड़क किनारे लोगों को इस टॉय ट्रेन की फोटो उतारते, वीडियो बनाते देखा जा सकता है।
इसी तरह चलते-चलाते खिलौना गाड़ी बतसिया लूप पहुंचती है। और बतसिया लूप पर जब टॉय ट्रेन घूमकर, अपना ही घेरा लगाकर एक तीखी ढलान चढ़ती-उतरती है उसे थमना होता है, ठहरना होता है। यह दोबारा ब्रेक का ऐलान होता है। दार्जिलिंग से चलकर घूम तक के 8 किलोमीटर /1 घंटे के सफर में यह दूसरा ब्रेक होता है। बतसिया लूप पर जब तक ट्रेन को फिर से खुराक दी जाती है, पानी पिलाया जाता है, ‘सहलाया’ जाता है उस दौरान यात्रियों को मौका मिलता है उस शहीदी पार्क को देखने का मौका जिसके मैनिक्योर्ड गार्डन फोटोग्राफी का एक और मौका लेकर आते हैं।
अगला पड़ाव होता है घूम स्टेशन।
दार्जिलिंग हिमालयन रेल की पटरियों पर घूम सबसे उंंचा स्टेशन है। दार्जिलिंग से ठुमक-ठुमकर करीब घंटे भर में 2225.7 मीटर की उंंचाई पर बने इस स्टेशन पर टॉय ट्रेन आधा घंटा रुकती है। तब आप झटपट स्टेशन से निकलकर मोमोज़ या मैगी का लुत्फ ले सकते हैं
वैसे मैगी से भी ज्यादा दिलचस्प है दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे म्युज़ियम जो स्टेशन कॉम्प्लेक्स में ही है। स्टेशन की पहली मंजिल पर बने संग्रहालय में इस दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का इतिहास सिमटा हुआ है।
घूम स्टेशन पर पटरियों पर ही खुला म्युज़ियम सजा है, पुराने इंजनों का।
पुराने इंजनों को दार्जिलिंग स्टेशन के बाहर एक खुले म्युज़ियम में देखा जा सकता है। सड़क पर गुजरती जिंदगी और बैकग्राउंड से झांकता पुराना वक़्त, एक साथ दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर आज भी सहेजा हुआ है।
टॉय ट्रेन की सवारी पूरी होने को आयी थी। दार्जिलिंग से बतस्यिा लूप होते हुए घूम स्टेशन और फिर वापस आने-जाने का मज़ेदार सफर दो घंटे में पूरा कर हम एक बार फिर बादलों से घिरे, बारिश से भीगे दार्जिलिंग स्टेशन पर थे। लिविंग हेरिटेज से साथ एक यादगार दिन बिताकर।
यों समय हो, मूड हो, रुझान हो तो इसी सफर को आगे जारी रख सकते हैं। दार्जिलिंग से सिलिगुड़ी तक। टूरिस्टों के लिए यह पिकनिक होती है लेकिन लोकल इसे ट्रांसपोर्ट साधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। यों बारिशों के अक्सर पहाड़ों पर भूस्खलन या अन्य किसी दिक्कत के चलते कई—कई दिन और कई बार महीनों यह रेल रूट बंद हो जाता है। लेकिन इस बार जुलाई के आखिरी हफ्ते में भी दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे पटरियों पर शान से दौड़ रही थी।
कैसे बुक करें दार्जिलिंग से सिलिगुड़ी तक का रेल सफर
अन्य रेल यात्राओं की ही तरह, पर जाकर आप इस सफर की आॅनलाइन बुकिंग करा सकते हैं। और अगर किसी वजह से चूक गए हैं तो दार्जिंलिंग में अपने होटल/रेसोर्ट के रिसेप्शन डेस्क से अनुरोध करें। देश के किसी भी सैंट्रलाइज़्ड रेलवे बुकिंग काउंटर से भी बादलों से होकर गुजरने वाले इस पर्वतीय सफर की बुकिंग की जा सकती है।
दार्जिलिंग से घूम स्टेशन तक आने-जाने में कुल जमा दो घंटे और 1100/रु का टिकट। विरासत से जुड़ने का यह खर्च बहुत भारी तो नहीं।
Special mention – DHR journey (July 20, 2016) was part of my campaign to know my country. For this campaign, I am currently travelling to all 35 world heritage sites in India in 365 days i.e. from January 16 to Dec 16. Follow #MyheritageTrails or http://www.gounesco.com/traveler/alkakaushik/ to know more.
WHS visited so far –
- Khajuraho group of temples, MP
- Amer fort, Rajasthan
- Qutb Complex, Delhi
- Humayun’s tomb
- CST station, Mumbai, Maharashtra
- Western Ghats (Maharashtra)
- Darjeeling Himalayan Railway, Darjeeling, WB