जब चार हजार मीटर ऊंचाई पर मिला था चाय का न्योता!
दुनिया में सबसे गर्मजोशी भरा निमंत्रण मुझे उस रोज़ ट्रांस हिमालय की ग्लेशियरों से लदी चोटियों के इस पार गुजरते हुए मिला था। स्पीति में ट्रैकिंग का पहला मौका था, चंद्रताल से यही कोई दो-चार किलोमीटर दूर अपने टैंटों से निकलकर इस झील को देखने निकले थे। एक छोटी सी चढ़ाई के बाद तेजी से ढलान उतरती है और आसपास की बर्फ पिघलने के बाद कुछ चालाक फूल-पत्तियां और घास इन ढलानों पर इन दिनों धीमे-धीमे अपनी गर्दन उठा रही होती हैं। बस उसी ढलान पर बैठे पाया था मैंने उसे। चार हजार मीटर से अधिक की उस ऊंचाई पर अपनी हांफती काया को कुछ सुकून देने मैं भी उसके बराबर जा बैठी थी।
और सभ्यता से दूर, चंद्रताल की ढलानों पर चाय का न्योता दिया था उसने मुझे!
बातों-बातों में उसने बताया कि अपनी दो-ढाई सौ भेड़ों के साथ कांगड़ा से यहां तक पहुंचा है वो पूरे एक महीने का सफर तय कर।
मन ही मन अपने घुमक्कड़ होने के गुरूर को कुछ-कुछ बौना होते देखा था उस रोज़! मालूम क्यों? कांगड़ा से चंद्रताल तक करीब 350 किलोमीटर का फासला तय करने के लिए उसने यही कोई दो-तीन दर्रों को लांघा होगा और पिघलते ग्लेशियरों के पानी से उफनती नदियों और अनगिनत-अनाम झरनों-धाराओं को भी पार किया होगा।
और हम अपनी 4X4 में पहाड़ी सड़कों को नापते हुए दावा करते हैं सफरबाज़ होने का …