रातों के इश्क में आकंठ डूबा शहर
A nightlife like nowhere else
स्पेनिश राजधानी चारों तरफ ज़मीन से घिरी है – लैंडलॉक्ड, यानी समंदर की मस्तियां इसकी किस्मत में नहीं है। नज़दीकी समुद्रतट करीब 4 घंटे दूर है। तो भी यह शहर हर शाम फकत फुर्सत और मस्तियों में गुजारता है। रिहाइशी बस्तियों से लेकर शहर की बड़ी शॉपिंग स्ट्रीट्स पर सजे बार-रेस्तरां हर शाम अंगड़ाई लेते हैं और कुर्सियों-मेजों की एक खूबसूरत दुनिया पेवमेंट पर सज जाती है। फिर रफ्ता-रफ्ता वहां जुड़ती हैं फुर्सतों की महफिलें जिन्हें उठने-सिमटने की कोई हड़बड़ी नहीं होती। वीकेंड आते-आते इन महफिलों की रौनकें बढ़ चुकी होती हैं और देर शाम से शुरू होते-होते अगली सुबह तक शहरभर के हंसी-ठट्टे, मुस्कुराहटें, किस्से और कहानियों के अंतहीन सिलसिले वहां जमा होते रहते हैं। स्पेन में दूसरे किसी भी शहर में नाइटलाइफ का वैसा रूप मुझे कहीं देखने को नहीं मिला जो मादरीद में दिखायी देता है।

हर वीकेंड खुद को जैसे किसी दिलचस्प कहानी में डुबो डालता है मादरीद। दोपहरी में सिएस्ता की आरामतलबी के बाद देर शाम तरोताज़ा होकर खुद को घरों की दीवारों के बीच समेट नहीं पाता यह शहर। शायद इसकी वजह इनके छोटे फ्लैट हो सकते हैं। तो भी जिंदादिली की फितरत के पीछे किसी के ठौर का आकार ही काफी होता तो शायद सीलमपुर की बस्तियों के पास भी रश्क करने लायक नाइटलाइफ होती!
शहर में दस्तक देने के ठीक हफ्ते भर बाद आए पहले वीकेंड की रात मैं मादरीद के लावापिएस डिस्ट्रिक्ट में उतर चुकी थी। रात के नौ बजे थे और सूरज तब भी क्षितिज पर डटा था। उसकी रुख्सती में अभी पूरे अड़तीस मिनट बाकी थे। मगर शहर को जैसे इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। वो तो टहलकदमी करते हुए एक बार से दूसरी, एक रेस्तरां से अगले, इस डिस्ट्रिक्ट से उस के बीच गुजर रहा था।

‘वीवा चपाता’ रेस्तरां में एक खाली टेबल जैसे हमारे ही इंतज़ार में थी। मैंने कान्या (Caña/स्पेन में बियर का छोटा गिलास) आर्डर की और साथ में सर्व हुए ऑलिव का लुत्फ लेने में मेरी दिलचस्पी तब तक बियर पर हावी हो चुकी थी। स्पेन में तापास (Tapas/स्मॉल बाइट्स) कल्चर से यह मेरी शुरूआती वाकफियत थी और मुझे समझते देर नहीं लगी कि क्यों इर दे तापास (a culinary tradition called – ir de tapas/तापास के लिए घर से बाहर निकलने की परंपरा) इस देश में किसी रस्म से कम नहीं है।

आने वाले दिनों में ये ऑलिव मेरी मुहब्बत का ऐलान बनने वाले थे, इसका इल्म मुझे मादरीद के खुले आसमान तले बितायी उस पहली रात ही हो चला था।

उस रात मैंने अपनी खुली आंखों से शहर को रातभर चलते देखा था। मैं भी कान्या का वो इकलौता जाम गटकने के बाद एंतॉन मार्तिन डिस्ट्रिक्ट की तरफ बढ़ चली थी। अब हमारी महफिल मास कोराज़न में जमी थी।
यहां स्पेनिश बियर महोउ (Mahou) की मस्ती में खुद को समेटा और फिर कॉरतेस डिस्ट्रिक्ट की जैज़ बार का नज़ारा देखने अगली सुबह तीन बजे तक वहीं डटी रही थी। मैं भरपूर कोशिश में थी कि मादरीद की फितरत को जी-भरकर अपनी रगों में उतार लूं। फैशनपरस्त मादरीदवासियों के हुजूम एक बार में मनपसंद ड्रिंक और तापास का लुत्फ लेने के बाद अगली मंजिल के तौर पर किसी दूसरे मुहल्ले के बार में डेरा डालते हैं, फिर दूसरे से तीसरे और चौथे और जाने कितने अलग-अलग ठौर आधी रात तक बदलते रहते हैं।
करीब ढाई-तीन बजे जब बार अपने दरवाज़े बंद करने लगते हैं तो ये दीवाने क्लबों में शरण लेते हैं। और फिर अगली सुबह छह-सात बजे जाकर मौज-मस्तियों के ये सिलसिले थमते हैं। ये क्लब ही तो हैं जो ब्रह्ममुहूर्त में जाकर थकने और थमने वाली मधुशालाओं के बाद शहर की रंगीनियों की बाकी इबारत लिखते हैं। वीकेंड इस शहर में रात भर बेरोकटोक चलने वाले जश्न की तरह आते हैं और इसके नाइट क्लबों में पहुंचकर ये जश्न अपनी मंजिल पाते हैं।
सबसे ज्यादा बार
दुनिया के किसी भी दूसरे शहर के मुकाबले मादरीद में सबसे ज्यादा बार हैं, हर 100 बाशिंदों पर कम से कम 1 बार अपनी हस्ती संभाले हुए है! हर गली-मुहल्ले में, हर मोड़ पर, हर तरफ जाम बेचते, तापास परोसते, मुस्कुराहटेंंऔर फुर्सतें छलकाते चेहरे दिखना आम है। जिंदगी बदस्तूर चलने वाला जश्न है मादरीद में और किसी को इस जश्न से शायद ही इंकार हो। युवाओं की महफिलें हैं तो बुजुर्गों के पास भी अफसाने कम नहीं हैं। जिंदादिली की अद्भुत मिसाल है मादरीद।
हेमिंग्वे ने ‘डैथ इन द आफ्टरनून’ में स्पेनिश जिंदगी की रंगीनियों का बयान करते हुए लिखा था — ‘रात में सोने का जिक्र भी मादरीद में हमें विचित्र बना सकता है। हो सकता है बहुत समय तक आपके दोस्त इस बात को लेकर असहज बने रहें। दरअसल, मादरीद में कोई भी रात का समूचा उल्लास समेटे बगैर सोने नहीं जाता। यहां तक कि दोस्तों के साथ मिलने-मिलाने के सिलसिले भी आधी रात के बाद किसी बार में ही शुरू होते हैं।’
मादरीद की नाइटलाइफ के बारे में हेमिंग्वे ने 1930 के दशक में जो लिखा था वो आज करीब एक सदी गुजर जाने के बाद भी उतना ही सच है जितना तब था।