भीमबेटका — ऐतिहासिक काल की एलबम
उन गुफाओं में शायद हजारों साल का उल्लास, सुख—दु:ख, उत्तेजनाएं, रोमांच, और जीवन-प्रवाह कैद है। इतिहासकारों के लिए वो केवल गुफाएं हो सकती हैं जिनकी दीवारों-छतों पर दर्ज भित्ती चित्र बीते काल के बोलते अक्षरों की तरह हैं। लेकिन किसी घुमक्कड़ के लिए ये महज़ गुफाएं और उनकी बोलती दीवारें नहीं हैं। जिन दीवारों से बीते वक़्त की फुसफुसाहट सुनती हो, जहां कितने ही मानवों का हास्य और रुदन बसा हो, जिनके गिर्द से गुजरा वक़्त आज भी वहां के सन्नाटों में साकार होता हो, उन्हें सिर्फ ऐतिहासिक महत्व की धरोहर मान लेना काफी नहीं है।
यह जिक्र है मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में भीमबेटका रॉक शैल्टर्स (शैलाश्रय ) का जिनकी चित्रकारी के नमूने आज भी हैरत में डाल देते हैं। भोपाल से होशंगाबाद रोड पर ओबेदुल्लागंज के दक्षिण की ओर करीब 46 किलोमीटर के फासले पर पहाड़ियों की ओट लिए खड़ी हैं वो बेशकीमती गुफाएं जो सदियों तक यों ही छिपी रही थीं। 1958 में भारतीय पुरातत्वविद् डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने रेलगाड़ी के सफर के दौरान खिड़कियों के उस पार कुछ अजब-गजब दृश्य देखे और विंध्य की पहाड़ियों के बीच से झांकते उन दृश्यों को देखने पहुंच गए। फिर क्या था, दुनिया के हाथ विशाल चट्टानों का वो खजाना लग चुका था जो दरअसल, एक प्राचीन युग के प्रवेशद्वार की तरह था। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसई) ने यहां सिलसिलेवार काम किया और एक के बाद एक कई गुफाएं अपने राज़ उगलने लगीं।
मुट्ठीभर गुफाओं तक है सैलानियों की पहुंच
विंध्य की पहाड़ियों की तलहटी में भीमबेटका समूह में ऐसी करीब साढ़े सात सौ गुफाएं हैं जिनमें पांच सौ में प्रागैतिहासिक काल के मानव की चित्रकलाओं के नमूने आज तक सुरक्षित दर्ज हैं। सैलानियों के लिए सिर्फ पंद्रह गुफाओं को खुला रखा गया है और उन्हें देखकर ही आप अपने पुरखों के संसार को कुछ-कुछ तो जान-समझ पाते हैं।
चित्रों में कौन रहता है ?
भीमबेटका का जिक्र अपने उन दोस्तों से ही सुनती आयी हूं जो इतिहास के छात्र रहे हैं, और वो बताते कम, समझाते ज्यादा हैं! यानी उनके विवरण अक्सर ‘कलर्ड’ होते हैं, अपनी किताबों में पढ़े विश्लेषणों से लदे हुए। यही वजह थी कि बीते कुछ सालों में भीमबेटका की गुफाओं को अपनी निगाहों से देखने की बेताबी लगातार बढ़ रही थी। बीते महीने मैंने देशभर में फैली विश्व धरोहरों को खुद देखने-छूने का अपना सोलो अभियान शुरू किया और उसी क्रम में इन गुफाओं का दूसरा नंबर आया।
दस हजार साल पुराने चित्रों को लेकर आपकी धारणा कैसी होगी? यही कि बेहद ‘बेसिक’ किस्म के चित्र होंगे, शायद चिड़िया—हाथी घोड़े की यहां-वहां बिखरी तस्वीरें! हैं, न! भीमबेटका की गुफाएं इस मायने में आपको निराश नहीं करतीं कि उनकी दीवारों और छतों के अंदरूणी हिस्सों में टंके चित्र बेहद सामान्य हैं, ज्यादातर में पशु आकृतियां हैं, कहीं मनुष्य पैदल हैं तो कहीं नृत्य मग्न हैं और कहीं हाथियों पर सवार।
किसी में युद्ध में विजय का उल्लास चमकता है हाथी सवारों के चेहरों से तो किसी में उत्तेजना भी दिखती है। आपको विरोधाभास लग सकता है यह सुनना कि साधारण से चित्रों में उत्तेजना या रोमांच जैसे भाव कैसे पकड़ में आए होंगे। यों ही चित्रमयी गुफाओं के सामने से गुजर जाएंगे तो वो आकृतियां शायद इतना भी नहीं बोलेंगी आपसे। लेकिन कुछ थमकर, कुछ ठहरकर उनमें झांकने की कोशिश करें, उन विषयों को समझने पर ध्यान जमाएं तो लगेगा जैसे चित्रों पर जमा बीते वक़्त की परतें उघड़ रही हैं। हाथी सवार अपने हाथ में लिए हथियार को घुमाता दिखता है और उस पल के रोमांच को दर्शाने के लिए हाथी का उत्तेजित लिंग भी चित्रकार ने उकेरा है। मुख्य रूप से सफेद रंगों से पशु—पक्षियों की आकृतियां बनायी गई हैं, कुछ लाल रंगों में भी हैं।
खास है जू रॉकशैल्टर (जंतु शैलाश्रय)
और ऐसी ही गुफाओं को लांघते—टापते हुए जब आगे बढ़ गई तो एक अजीब—सी गुफा मेरे सामने थी। इस गुफा में एक या दो बार नहीं बल्कि कई—कई बार, अलग—अलग काल में एक ही कैनवस पर चित्रकारी की गई थी। ऐसी गुफाएं और भी हैं भीमबेटका समूह में और यह सवाल मन में उठता रहता है कि आखिर इतनी ढेरों दीवारों के बावजूद सिर्फ एक ही दीवार को बार—बार, हर बार रंगने की क्या खास वजह हो सकती है। इस पूरे इलाके में ऐसे शैलाश्रय बिखरे पड़े हैं जिनमें पेंटिंग्स की गई हैं या की जा सकती हैं। तो फिर एक ही दीवार पर बार—बार क्यों लौटता रहा है अलग-अलग युग का मानव? इतिहासकार इस सवाल से जूझते आए हैं आज तक और जवाब नदारद है।
यह गुफा जू शैल्टर (जंतु शैलाश्रय गुफा संख्या 4) कहलाती है यानी इतने सारे पशुओं का समूह कि किसी चिड़ियाघर में होने का आभास पैदा करने वाली गुफा। प्रो. वाकणकर ने ही इस गुफा को यह नाम दिया था। पुरातत्व की समझ रखने वाले भी आज तक अटकलें ही लगाते आ रहे हैं कि इतने ढेरों कैनवस उपलब्ध होने के बावजूद वो क्या कारण था कि जू रॉकशैल्टर में अलग-अलग काल में मानव ने पेंटिंग्स बनायीं। उसे पिछली पेंटिंग्स को मिटाने, नष्ट करने की जरूरत भी महसूस नहीं हुई। बस, जब मन हुआ तो कहीं से भी अपनी चित्रकारी शुरू कर दी, मानो पिछला कैनवस उसके सामने था ही नहीं। इस तरह, पुराने चित्रों की धुलाई किए बगैर, उन्हीं पर फिर-फिर रंगते चले जाने की वजह क्या हो सकती है?
भोपाल की आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना कहती हैं, ”साफ-साफ वजह तो इतिहासकारों को भी समझ नहीं आयी है। शायद ये गुफाएं पवित्र रहीं होंगी, इसीलिए प्राचीन मानव बार-बार इन तक लौटता रहा था।” बहरहाल, उसके लौटने के कारण हमारी समझ से परे हैं, लेकिन हम भी तो इन्हें देखने के बहाने ही सही, बार-बार लौट रहे हैं। अपने वर्तमान से समय चुराकर बीत चुके वक़्त को टटोलने, समझने, महसूसने ..