चंबल की घाटियां बुला रही हैं तुम्हें!
आगरा कार रैली (31 jan – 01 Feb 2015) से उत्साहित तो थी लेकिन रैली का रूट चंबल की उन बदनाम घाटियों से होकर गुजरेगा जो कभी डाकुओं की बंदूकों और फिरौतियों के चलते थर्राया करती थी, यह मेरी कल्पना में दूर-दूर तक नहीं था। और पहली बार उन घाटियों के बीच से गुजरी थी जिन्हें इससे पहले सिर्फ ट्रेन की खिड़कियों से देखा भर था! शहरी खांचों में रखकर देखेंगे तो मिट्टी के टीले भर जमा हैं वहां। उस शाम जब चंबल की घाटियां ढलते सूरज की बची-खुची रोशनी समेट रही थीं, कीकर की बारीक पत्तियों से छनती धूप चंबल नदी के पानी पर ठहरी थी, ठीक उस पल मैंने महसूस किया कि लाख बदनाम सही चंबल मगर हिंदुस्तान की सबसे खूबसूरत नदियों में से एक है। है न!
और साफ-उजली तो इतनी कि गंगा-यमुना लजा जाएं। हम घड़ियाल सैंक्चुरी देखने आए थे नदी के किनारे, दूर तलक चंबल का ठहरा पानी, मिट्टी के ढूहों-टीलों से पटी घाटियों से घिरा था। इस बीच, सूरज ने नीचे उतरना शुरू कर दिया और पानी पर काली छाया तैरने लगी। लहरों का पानी से कैसा नाता होता है, यह उस रोज़ नहीं जाना जा सकता था क्योंकि पानी में एक भी हलचल नहीं थी। ऐसे में घड़ियाल के दिखने की उम्मीद तो बढ़ गई थी लेकिन इस लुप्तप्राय: जंतु की कृपा दृष्टि हम पर नहीं पड़ी।

‘अपवित्र’ माने जाने वाली चंबल नदी में डुबकी लगाने की प्रथा न सही, लेकिन मगर-घड़ियालों की इस बस्ती ने आज चंबल के वीराने को इको-टूरिज़्म के मानचित्र पर ला खड़ा किया है।
और कार रैली के बहाने तो एडवेंचर टूरिज़्म तक की गूंज चंबल में सुनी जा सकती है।

आगरा में ताज और आगरा के किले का आकर्षण बेशक कभी फीका नहीं पड़ने वाला लेकिन उसके आगे के संसार को टटोलने की ख्वाहिश लेकर मैं हमेशा लौट जाया करती थी। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य का यह इलाका सिर्फ मुहब्बत की निशानी तक सिमटा कैसे रह सकता है, यह सवाल मुझे अक्सर परेशान करता था। बीते कुछ महीनों में हेरिटेज आर्क के जिक्र के बहाने आगरा फिर टूरिस्टी मानचित्र पर छाया रहा, लेकिन इस बार वो सिर्फ ताज नगरी नहीं रह गया था। आगरा से आगे भी घुमक्कड़ी की मंजिलें खुल चुकी थीं और मैंने अपने ताजा सफर में इन्हें ही टटोला था।

बटेश्वर से सूर सरोवर और पटना पक्षी विहार तक फैला पंछियों का संसार
अब चंबल नदी का किनारा हमसे छूट चुका था और हम यमुना के किनारे खड़े बटेश्वर तीर्थस्थल पर पहुंच चुके थे। यहां एक-दो नहीं बल्कि डेढ़-दो सौ मंदिरों के समूह थे। बटेश्वर नाथ मंदिर के अलावा भीमेश्वर, नर्मदेश्वर, रामेश्वर, मोटेश्वर, जागेश्वर, पंचमुखीश्वर, पातालेश्वर और यहां तक कि केदारनाथ, बदरीनाथ मंदिरों को यहां कतारबद्ध देखना आपको विस्मित कर देगा। मंदिरों के इन सिलसिलों को देखते हुए ही हम यमुना के घाट की तरफ बढ़ चले थे। सामने का दृश्य देखकर अवाक् रह गए। यमुना यहां वैसी नहीं है जैसी आपकी कल्पना में हो सकती है, एक किनारे मंदिरों और दूसरे पर हरियाली से घिरी यमुना को देखना यहां सुखद अहसास से भर देता है। और पानी पर तैरते, परवाज़ भरते किस्म-किस्म के पक्षियों-बत्तखों को देखकर यह मुगालता होना लाज़िम है कि हम किसी पक्षी विहार में हैं। बटेश्वर होगा दुनिया के लिए तीर्थ, सर्दियों में बर्ड-वॉचिंग के लिहाज से बेहतरीन अड्डा बन जाता है। जो जीव-जंतु प्रेमी हैं उनके लिए इसी बटेश्वर में हर साल एक पशु मेला भी आकर्षण का केंद्र है।
आगरा को केंद्र बनाकर हमने उसके इर्द-गिर्द इस बार एक नया संसार टटोला था। इस बार इस धारणा को तोड़ने में भी कामयाबी मिली थी कि आगरा सिर्फ ताज नगरी नहीं है, कि आसपास का मतलब सिर्फ सिकंद्रा या फतेहपुर सीकरी नहीं है, और यह भी कि उत्तर प्रदेश का यह इलाका सिर्फ इतिहास और स्मारकों तक ही सीमित नहीं है। यहां कुदरती नज़ारे भी हैं, वन्य जीवन है, पक्षी विहार हैं, चंबल अभयारण्य में नाव और उंट सफारी है। पैदल भी चंबल की खाक छानना न सिर्फ सुरक्षित है बल्कि जहां मुमकिन हो इसी तरह चंबल से संवाद करें।

और हमारी ही तरह आप भी महसूस करेंगे कि हिंदुस्तान के नक्शे की जो सीमाएं दिखती हैं, वास्तव में, उनके भीतर रहकर भी हर कोने, हर मोड़ से गुजर जाने के लिए एक जीवन कम है!
चंबल और आसपास
# चंबल राष्ट्रीय अभयारण्य/ दूरी 80 किमी
# बटेश्वर
मंदिर समूह और पशु मेला/ दूरी 70 किमी
# सूर सरोवर (कीठम झीलम) पक्षी विहार/ दूरी 23 किमी
# पटना पक्षी विहार/ दूरी 57 किमी
# इटावा लायन सफारी/ दूरी 57 किमी
सभी दूरियां – आगरा से