मनाली से आगे भी है जहां
लेह-मनाली मार्ग बोर्डों पर चस्पा हो तो रोंगटे खड़े हो जाना स्वाभाविक है। लेकिन हम न लेह की तरफ जा रहे थे और न मनाली ही मंजिल थी! चौंक गए न! दरअसल, रोहतांग पास से उतरकर मढ़ी, वशिष्ठ के बाद मनाली शहर को बायपास करते हुए हम नग्गर की तरफ बढ़ रहे थे। यह वही मार्ग है जो लेह भी जाता है और यही वजह थी कि जुलाई की उस दोपहर इस सड़क पर बाइकर्स की सरगर्मियां कुछ ज्यादा ही थीं।
सड़क किनारे के ढाबों पर रौनक बिखरी हुई थी और सेब खुबानी के दरख़्तों पर भी वैभव लिपटा था!
नग्गर पहुंचने का उतावलापन अब बढ़ रहा था और मनाली से नग्गर तक करीब 40 मिनट की दूरी भारी लगने लगी थी। सवेरे 8 बजे चंद्रताल से विदा ली थी और महज़ 105 किलोमीटर का यह फासला तय करते-करते दिन ढलने लगा था। जगतसुख गांव का बोर्ड दिखा तो कुछ राहत मिली कि मंजिल करीब ही है। वैसे जगतसुख से सिर्फ गुजरना उस दिन बहुत अखरा था मुझे, यही वो गांव है जहां से मनाली के आसपास ट्रैकिंग के रास्ते निकलते हैं और इसी गांव में एक पुराना शिव मंदिर भी है।
नग्गर की राहगुज़र पर बढ़ते हुए थकान से चकनाचूर थे हमारे बदन। नग्गर पैलेस से आगे बढ़ने पर करीब एक किलोमीटर तक कोलाहल ही दिखा था उस पहाड़ी सड़क पर। लेकिन जल्द ही बाजार की रेल-पेल छूट गई थी, और हम एक पतली सड़क पर बढ़ रहे थे। यों दिन उतना भी नहीं ढला था लेकिन बायीं तरफ पहाड़ी और दायीं ओर देवदार के घने दरख़्तों की छांव ने अंधेरे का आभास पैदा किया था। और इसी रास्ते पर करीब दस – पंद्रह मिनट की ड्राइविंग के बाद हम पहुंच चुके थे अपनी आरामगाह Sonaugi Homestead (http://www.sonaugi.com/) में! थकेहाल बदन के लिए इससे बढ़कर कुछ होगा क्या!

कितनी रूमानी होती है न वो जगह जिस तक पहुंचने के लिए पार्किंग में गाड़ी रखने के बाद यही कोई 5 मिनट की वॉक जरूरी हो। Sonaugi Homestead तक जाने के लिए पहाड़ की एक तीखी ढाल नीचे उतरती है, फिर उतना ही तीखा मोड़ काटती है और एक और ढलान उतरने के बाद आप अपनी मंजिल के इतने करीब होते हैं कि उसे छू सकें। लेकिन मंजिल अभी भी आपसे दूर रह जाती है! क्योंकि दरम्यां सेब और आड़ुओं के दरख़्त खड़े हैं, ललचाते हुए से। एक छोटा-सा खेत बिछा है जिसमें उगी सब्जियां रात आपके मैन्यू का हिस्सा बन सकती हैं! सामने एक घाटी पसरी है और उसमें दूर तलक बसाहट है।

कतरैन और अरचंडी जैसे गांवों का खूबसूरत नज़ारा जब आपके सामने हो तो अपने कमरे में घुस जाने का गुनाह कैसे किया जा सकता है! हमने चाय आंगन में ही मंगवा ली है, उस दिन की बची-खुची रोशनी और उस सुकून के ठिकाने पर लौट आयी अपनी हिम्मत को दाद देते हुए बाकी की शाम वहीं बिता दी।

अगर पहाड़ों के बीच पहुंचकर भी आपको ऐसे सवाल सताते हैं कि ‘क्या करें, कहां जाएं, क्या देखें’ तो सनौगी बिल्कुल न जाएं! सनौगी होमस्टेड आपके लिए कैदखाना होगा। दुनिया की बेहद सुकूनदायक, शांत, अलग-थलग जगह भला रैगुलर टूरिस्ट के लिए हो सकती है? सनौगी बस ऐसा ही है।
सनौगी की वो रात आज भी नहीं भूली है, अंधेरे में लिपटी घाटी में दूर बत्तियों की टिमटिमाहट को देखते हुए, कहीं किसी मोड़ से आती ब्यास की बेचैनियों को सुनते हुए धीमे-धीमे गुजरे रहे थे वो लम्हे। आसमान घिरा था मानसून की अंगड़ाइयों से इसलिए घाटी को ताकते हुए ही सारा वक़्त बिता दिया। जैसे जमीन और आसमान में कहीं कोई जद्दोजहद नहीं थी उस रोज़ वैसे ही मन में भी कोई शोर नहीं था। सनौगी में शांति पसरी थी मेरे इर्द-गिर्द …

कभी-कभी कुछ कारोबार कमर्शियल एंगल से ऊपर चले जाते हैं या फिर उनका बिज़नेस मॉडल उन्हें अलग बनाता है। मेरा ये ठिकाना भी कुछ ऐसा ही था। लाइब्रेरी की खिड़की पर चिलमन ऐसी हो तो क्या कहेंगे आप ?
और उतनी ही खास थी लाइब्रेरी ..

मेरा ख्याल है सनोगी में तो बस वक़्त को चुपचाप सरकते हुए देखने आना चाहिए। अगर क्रिएटिव पर्सन हैं तो रंगों—कैनवस—नोटबुक—लैपटॉप के साथ इसे ठौर बना लें कुछ हफ्तों के लिए। और जब कोई दिन अलग बिताना हो तो आसपास के ठिकानों पर पैदल ही निकल जाएं —
सनोगी – नशाला वॉक
नशाला – नग्गर वॉक
चंद्रखानी-मलाणा ट्रैक
जाना विलेज वॉक
या घाटी की तरफ ब्यास के किनारे-किनारे सैर, क्या ख्याल है!

कैसे पहुंचे –
THE SONAUGI HOMESTEAD
Village Sonaugi
PO Archhandi, Janna Gram Panchayat,
Off Naggar-Bijli Mahadev Road,
Tehsil & District Kullu 175104 (Himachal Pradesh)
Height ASL – 1917 meters (6300 feet) Above Sea Level