इस ब्लाॅग में अब से यह नर्इ पहल जुड़ रही है। आपको हिंदी जगत की उन पत्रिकाओं-प्रकाशनों की जानकारी देने का प्रयास मैं करूंगी जिनमें सैर-सपाटे से नाता रखने वाला कोर्इ लेख-पन्ना या कुछ और प्रासंगिक सामग्री छपी होगी। तो तैयार हो जाइये इंटरनेट के मायाजाल पर प्रिंट की दुनिया की दखलंदाजी के लिए!
घुमक्कड़ों को सिर्फ घूमना ही नहीं होता बलिक घुमक्कड़ी से संबंधित साहित्य पढ़ना भी होता है। जितना पढ़ा, उतना जाना और जितना जाना उतना घूमा-देखा का सीधा सा समीकरण है। घुमक्कड़ी साहित्य यों तो सदियों से तैयार होता रहा है, जब कालिदास ने मेघदूत में मेघों को कैलास पर्वत पर जाने का संदेश दिया था तो वो भी घुमक्कड़ प्रेरणा ही था। और आज भी वह परंपरा कायम है।
हिंदी की पत्रिकाओं में “कादम्बिनी” वो नाम है जिससे आप-हम बहुत-बहुत समय से वाकिफ रहे हैं। इसी कादम्बिनी का ताजा अंक यानी मर्इ 2015 एडिशन नदियों के विज्ञान, मिजाज़, मूड, आर्थिकी, सामाजिक पहलू आदि से जुड़ा है। इसमें दर्र-दर्र गंगे के लेखक अभय मिश्र का कथन चौंकाता है कि जिस गंगा को हम गंगा समझकर पूजते हैं क्या वो वाकर्इ गंगा है? और जाने-माने पर्यावरणविद अनुपम मिश्र बता रहे हैं बाढ़-सूखे और नदी के अंतर्सबंधों में इंसानी घालमेल की कहानी।
आप चौंके तो नहीं न कि पर्यटन का नदी पर समर्पित साहित्य से क्या रिश्ता? ज़रा इस लेख को पढ़ लें, कांगेसी नेता मीनाक्षी नटराजन ने लिखा है चंबल नदी पर और फिर कहें क्या नदियों का मामला सैर-सपाटे का भी मामला नहीं है ?


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नोट : दैनिक भास्कर समूह की मंथली मैगज़ीन अहा! जिंदगी और हिंदुस्तान टाइम्स समूह की पत्रिका “कादम्बिनी” के अप्रैल 2015 अंक पर्यटन विशेषांक थे। इसी तरह, दिल्ली प्रेस समूह की मैगज़ीन सरिता का अप्रैल और मर्इ अंक भी पर्यटन के नाम रहा।
और मेरी कच्छ यात्रा की यादों को इसमें जगह मिली कुछ इस तरह –