Champaranya, the birthplace of Saint Vallabhacharya, founder of Vallabh sect
(Nearest Railhead / airport – Raipur, Chhattisgarh, distance – 50 kms)
महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली चंपारण्य राजधानी छत्तीसगढ़ से 50 कि.मी. दक्षिण पूर्व और त्रिवेणी संगम राजिम से 15 कि.मी. उत्तर पूर्व में महानदी के तट पर आज भी इस महान संत की गाथाओं को गुनगुनाती है। वक़्त के बीत जाने का जैसे यहां कोई असर नहीं पड़ा है और रामानंद, कबीर, गुरुनानक देव, रामदास, संत तुकारामा, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु के समकालीन महाप्रभु वल्लभाचार्य के इस ऐतिहासिक मंदिर का संगीतमय वातावरण आपको जीवन की चकाचौंध और भागमभाग से दूर कुछ शांत पलों को भोगने—बिताने का अवसर देता है।

भगवान श्रीकृष्ण के प्रिय भक्त थे महाप्रभु वल्लभाचार्य और भागवत पुराण के आधार पर उन्होंने शुद्ध द्वैत मतानुसार पुष्टि मार्ग का प्रवर्तन किया था। वल्लभाचार्य भारत उसी स्वर्णिम युग में पैदा हुए थे जिसे भक्ति युग के नाम से भी जाना जाता है। आज चंपारण्य पुष्टि मार्गीय अनुयायियों का प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है। हर साल वैशाख कृष्ण पक्ष एकादशी को वल्लभाचार्य के जन्म दिवस के मौके पर यहां हजारों भक्त देश-दुनिया से यहां आते हैं।
इस दुमंजिले मंदिर में पहली मंजिल म्युज़ियम के रूप में है जिसमें महाप्रभु के जीवन के अलग-अलग अवसरों को आकर्षक पेंटिंग्स के रूप में दर्शाया गया है।

मंदिर में श्री कृष्ण के बाल्यरूप की पूजा की जाती है और यही कारण है कि वल्लभाचार्य के भक्त मंदिर के पीछे बह रही महानदी को यमुना का ही रूप मानते हैं।
करीब 6 एकड़ में फैला मंदिर परिसर शमी और छाई के वन से घिरा है जिसमें आज भी पेड़ काटना वर्जित है। लोक विश्वास है कि ऐसा करने से प्राकृतिक विपदा आती है। इसी विश्वास के चलते आज भी यह पेड़ मंदिर के भीतरी गलियारे में सुरक्षित खड़ा है। लोक विश्वास आज भी विज्ञान पर भारी पड़ता है, है न!

मंदिर के आसपास ठहरने के लिए कई धर्मशालाएं हैं, छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल का सूचना केंद्र भी है जिसमें एक डॉरमिटरी की व्यवस्था है।
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