Gunji (10,370 feet) to Nabhidhang (13,980 feet)
via Kalapani (11,800 feet)
गुंजी पर ही कुटी नदी कालापानी से आ रही काली से आकर मिलती है। कुटी आदि कैलास से आ रही है और काली के झगीले पानी में समाने के बाद दोनों अब आगे की राह बढ़ती हैं। इसी कुटी पर बने झूला पुल को पार कर हमें अपने कैंप दिखायी दिए हैं, लेकिन उन तक पहुंचने से पहले एक और छोटी मगर तीखी चढ़ाई चढ़नी है। अब हिम्मत ने जवाब दे दिया है, लिहाजा हमने पहाड़ी पर चढ़ने की बजाय उसे घूमकर कुछ लंबा सफर तय कर कैंप तक पहुंचने का फैसला किया। पहाड़ी पर हमारे पोर्टर पहले से हमारी राह देख रहे हैं, हमारे इस detour को देखकर उनसे हंसी रुकती नहीं हैं, लेकिन फिर हम शहरी लोगों पर रहम खाकर शायद वो अपने काम में लग गए।
गुंजी बेस कैंप में दो दिन रुकना है, आराम और मेडिकल जांच के लिए। दोनों एक-दूसरे के कितने विरोधाभासी हैं! चैन का एक दिन कइयों के लिए तनाव का दिन था। यों भी 10,370 फुट की उंचाई पर आते-आते ब्लड प्रेशर बढ़ जाना लाज़िम था, और जो पहले से मरीज़ थे उनकी दिल की धड़कनें, नब्ज़, ब्लड प्रेशर सब तेज़ और तेज़ हो चला था।

बहरहाल, नतीजे हाथ के हाथ मिल गए, हम पास हो गए थे और अब आगे के सफर के लिए तैयार थे। अलबत्ता, हमारे दो अहम् विकेट यहां लुढ़क गए। हमारे बैच के दो सबसे सीनियर यात्री, 69 साल के बलदेव जी और 68 साल की मंजुला बेन अब आगे हमारे साथ नहीं जाएंगे, यह तय हो गया था। उम्र के इस मुकाम पर कैलास दर्शन के उनके हौंसलों को हमने सलाम किया और अगले दिन की पैकिंग में जुट गए।
दूरदराज तक के सफर का भरोसेमंद साथी है StateBankOfIndia (https://www.sbi.co.in/), उसकी एक मिनी शाखा गुंजी में भी है। तीर्थयात्रियों ने थोड़ी हैरत से, थोड़ी जरूरत से इस बैंक की सेवाएं भी लीं।
यादों से ही यात्रा की कड़ियां जुड़ती हैं, उन यादों का एक ही दूसरा नाम है मानसरोवर वन। गुंजी बेस कैंप में अब यात्रियों को पौधे लगाने थे, सेब, चीड़, गुलाब के पौधों को रोपते-रोपते हमने पिछले बैचों के पौधे तलाशने चाहे तो निराशा ही हाथ लगी। दरअसल, उस बेरहम उंचाई पर जब सर्दियों में बर्फ गिरती है तो सब कुछ अपने आगोश में ले लेती है। बहुत कम बचा रह जाता है और उसी बहुत कम के नामो-निशान हमने भी देखे।
अपने निशान छोड़ना हर किसी को अच्छा लगता है, इन उत्साही यात्रियों ने भी गुंजी कैंप के आंगन में पौधे रोपकर शायद ऐसा ही कुछ करना चाहा था।
अगली सुबह इन फाइबर हट के ठिकानों को अलविदा कहा और फिर अनजान राहों पर बढ़ चले हमारे कदम।
गुंजी (10,370 फुट) – कालापानी (11,800 फुट) – नाभिढांग (13,980 फुट) / 17 किलोमीटर
गुंजी से कालापानी तक रास्ता काफी आसान होने वाला है, लगभग मैदानी इलाका, पगडंडियों-पहाड़ियों की बजाय एक कच्ची सड़क पर बढ़ना है। राहत मिली है, कभी तो चट्टानों से उलझे बगैर अपनी मंजिल को नापने चला जाए। और रास्ता आसान होने के साथ-साथ बेहद खूबसूरत भी था। कच्ची सड़क के एक ओर पहाड़ और दूसरी तरफ काली नदी, नदी के उस तरफ भोजपत्रों का इलाका था। यानी हम काफी उंचाई पर पहुंच चुके थे। अब चीड़ जैसे पेड़ों की दादागिरी लगभग सिमट रही थी। हिमालयी वनस्पति का मिजाज़ फर्क पड़ने लगा था, पेड़ों का बौनापन बढ़ता जा रहा है जो इस बात का इशारा था कि और आगे जाते-जाते उनकी हस्ती नदारद होने वाली है।
9 किलोमीटर बाद कालापानी है, काली नदी का उद्गम और उसी जगह काली माता का मंदिर। मंदिर के सामने की उंंची पहाड़ी पर एक गोल मुंह खुला है, कोई गुफा है शायद … इन अटकलों से जूझने का ज्यादा वक्त नहीं मिला हमें। काली मंदिर में ड्यूटी पर तैनात आईटीबीपी के जवान ने बताया कि यही है ऋषि ब्यास की गुफा जहां उन्होंने बरसों तपस्या की थी। कई साल पहले आईटीबीपी का एक जवान भी उस गुफा तक होकर आया था और उसकी निशानी के तौर पर गुफा के मुख पर एक झंडा भी है। उसी से पता चला कि गुफा के भीतर कई सौ लोगों के समाने की जगह है … पहाड़ अपने मिथकों से कभी अलग नहीं होते और उन पर रहस्यों का ऐसा मुलम्मा चढ़ाकर रखते हैं कि शायद इसी वजह से सदियों से इंसान वहां आते-जाते रहते हैं, बगैर किसी रहस्य को समझे ..
अध्यात्म मेरे लिए मंदिरों में वक़्त गुजारना कभी नहीं रहा, उस दिन भी ऐसा ही हुआ। बस उस बियाबान में, आसपास की शांति ने नि:शब्द कर दिया था।
आगे रास्ते में दुश्वारियां बढ़ने लगी थीं। पहाड़ों की ढलानों पर से पेड़-पौधे गायब हो चुके थे, और उन्हीं के साथ हवा में आॅक्सीजन भी कम पड़ने लगी। अब ढलानों पर चढ़ना-उतरना ज्यादा मेहनत का काम होता जा रहा है। फेफड़ों की कमज़ोरियों को उनकी बाहर तक सुनायी देती आवाज़ से महसूसा जा सकता है।

मंजिल ज्यादा दूर न सही, मगर रास्ता दुश्वार था। नाभिढांग तक पहुंचने की जैसे जल्दी नहीं रही थी हमें, थकान से सभी के हौंसले पस्त थे।
जिसे जहां कमर टिकाने की जगह मिली वहीं लेट-बैठ गया, हमारे टीम लीडर ने भी खुद को तरोताज़ा करने के इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया .. जैसे मालूम हो उन्हें कि घास का ऐसा अदद टुकड़ा आगे पथरीले रास्ते पर अब अगले कई रोज़ नहीं दिखने वाला है!
रास्ते की दुर्गमता का बयान भी शब्दों में करते नहीं बनता। इंसान तो इंसान, घोड़े—खच्चर भी हांफने लगे थे। तीखी चढ़ान-उतरान पर अपने पैरों और काठी का सहारा ही था।

जहां थोड़ी सपाट सतह आती, हम फिर घोड़ों की पीठ पर लपक लेते।
गुंजी से सवेरे पांच बजे चलना शुरू किया था, आज पूरे 17 किलोमीटर का ट्रैक था, यह सुनकर बहुत घबराहट नहीं हुई थी। तो भी दूरी तो नापनी ही थी। और इस दूरी को नापते हुए ही हमने पूरे 2740 फुट की उंंचाई भी हासिल कर ली थी।
अगला पड़ाव नाभिढांग था।
आईटीबीपी का कैंप और केएमवीएन का यात्रियों का निहायत अस्थायी ठिकाना।
सती की नाभि यहीं गिरी थी, इसलिए शक्ति पीठ भी है नाभिढांग।
कुदरत का चमत्कार है ओम पर्वत, नाभिढांग के बेस कैंप से इसी चमत्कार को देखा।
शेष यात्रा अगली पोस्ट में …
* My Journey to Shiva’s Abode – Kailas Mansarovar (Part I) was shared a few days back and is available under the categories – Trekking / Spiritual tourism
And here is the link –
Hope you enjoy the trek for kailash Mansarover yatra 2014…if you come from Nepal side please contract us
sure, Dharma Yatra !
Hope you all enjoy Kailash Mansarovar Yatra.