एक गोवा ऐसा भी …
सूर्य, समंदर और सुरा के समीकरण से परे भी एक गोवा है, वही गोवा मेरी मंजिल बना था इस बार। पार्टी, नाइटलाइफ, शैक्स, बीच, क्लब, पब, रेसोर्ट, मस्ती-सुरूर से अलग एक और संसार है गोवा में, उसी को टटोलने की खातिर हमने साउथ गोवा के वार्का गांव में अपना ठिकाना बनाया। खेतों को पार करते हुए, चटख रंगों से पुते घरों के सुकून को महसूस करते हुए गोवा के इस कोने में पहुंचना भी अपने आप में किसी उपलब्धि से कम नहीं। उपलब्धि इसलिए क्योंकि नाॅर्थ गोवा में समुद्रतटों की लंबी कतारों, उनके किनारे पसरी मस्ती-सुरूर से सराबोर सैरगाहों का मोह संवरण कर पाना आसान नहीं होता। और फिर सारी चहल-पहल भी तो पारंपरिक रूप से मांडवी नदी के उस पार ही सिमटी रही है। लेकिन उत्तरी गोवा की बजाय दक्षिण के देहात को सैर-सपाटे की मंजिल बनाने के मायने हैं गोवा की मूल फितरत से अलग जीने की जिद से उलझना। और वही हमने किया भी, जी-भरकर!
बारिश के रोमांस में नहाया गोवा

बारिश में नहाया गोवा बेहद शांत और सुकूनभरा होता है और सचमुच उन लोगों के लिए किसी अद्भुत अनुभव से कम नहीं होता जो शहरी दुनिया के कंक्रीट जंगल से कुछ राहत के पल तलाशने यहां आते हैं। बारिश में नहाए, अलसाए, सुस्ताए सौम्य गोवा को देखना हो तो बालकनी-बरामदे में बैठे रहकर जिंदगी को आते-जाते हुए बस निहारते रहें। खिड़कियों से उस पार झांकते कुछ ठहरे-ठहरे से नज़ारों, पेड़ों की शाखों-पत्तियों पर ठिठकी रह गई पानी की बूंदों को, पानी में नहायी जमीन और धुले पेड़-पौधे मिलकर गोवा के कैनवस पर इन दिनों एक जादुई अहसास रचते हैं।
गोवा में हर साल लाखों सैलानी पहुंचते हैं जिनमें से ज्यादातर सर्दियों में अक्टूबर से जनवरी के पीक सीजन में यहां छुट्टियां मनाने आते हैं। क्रिसमस और नए साल की धूम गोवा में देखने लायक होती है और उसी दौरान यहां देश-विदेश के पर्यटकों से ठसाठस भरी सैंकड़ों उड़ानें पहुंचती हैं। फिर फरवरी में कार्निवाल के दौरान और यहां तक कि गर्मियों में मई के महीने में भी पर्यटक गोवा आते हैं। लेकिन साल के सबसे खूबसूरत मौसम यानी मानसून में सैलानियों के कदम इस ओर शायद ही उठते हैं जिससे साफ है कि सैलानियों ने ‘बीच टूरिज्म’ को ही गोवा का पर्याय समझ लिया है।
मानसूनी महीनों में समुद्र में तैरना, खेलना बंद हो जाता है क्योंकि तूफानी वेग से उठती लहरें समुद्र को खतरनाक बना देती हैं। गोवा के समुद्रतटों पर भी सैलानियों को आगाह करते लाल झंडे गड़ जाते हैं। फिर भी इन चेतावनियों को नजरंदाज कर लोग समुद्र में जाने को उतावले दिखते हैं तब कुछ तटों पर टूरिस्ट पुलिस, लाइफ गार्ड का बंदोबस्त भी किया जाता है।

समुद्र में उतरने का मोह आपको इस वक्त रोकना पड़ता है, यहां तक कि स्कूबा, स्नाॅर्कलिंग, वाॅटर स्कूटर, डाॅल्फिन वाॅच जैसे तमाम वाॅटर स्पोर्ट्स भी बंद हो जाते हैं। लेकिन बारिश के रोमांस को महसूसने के लिए समुद्रतट की गीली रेत पर नंगे पांव सैर करने का रोमांस भी इसी मौसम में अपने चरम पर पहुंच जाता है। सैलानियों की भीड़-भाड़ से मुक्त गोवा में बारिश की टुपुर-टापर के संगीत से लेकर लहरों की गर्जना को सुनते हुए अपने चेहरे पर बारिश की फुहारों को महसूस करना एकदम यादगार अनुभव होता है। इस बार गोवा बारिश का लुत्फ लेने पहुंचे और इस अलग अहसास को जिएं, कुछ रोज़ ही सही!
त्योहारों की रौनक भी
गोवा की फितरत में उत्सव हैं, आयोजन हैं, मौज-मस्ती है यानी कुल-मिलाकर जीने की उमंग और उल्लास समाया है यहां के जन-जीवन में। उसी उल्लास का हिस्सा बनने तो दूर-दराज से सैलानी यहां पहुंचते हैं। लेकिन उल्लास-उमंग का यह माहौल सिर्फ नए साल के आसपास तक ही सिमटा नहीं रहता। बारिश के महीनों में भी गोवा त्योहारों की मस्ती में डूबता-उतराता है। हर साल 24 जून को साओ जाओ का पर्व सेंट जाॅन बैपटिस्ट फीस्ट के तौर पर गोवा मनाता है जब युवा लड़के लड़कियां कुंओं, तालाओं, सरोवरों में कूदते हैं और गांववालों द्वारा उनमें डाले गए उपहारों को तला’ाने में जुटे होते हैं। उधर, उत्तरी गोवा के बारदेज+ तालुका में इस दिन रंग-बिरंगी नौकाओं की रेस भी होती है। मानूसन जब अपने शबाब पर होता है यानी अगस्त में गोवा एक और पर्व बाॅन्देरम मनाता है। पारंपरिक गोवा का यह रूप देखने के लिए बरसात में इस बार गोवा का रुख करें।
मसाला बागानों की सैर

वास्को-डि-गामा ने जब पुर्तगाल से भारत तक का समुद्री मार्ग खोजा था तो इस पूरे दुस्साहसी सफर के पीछे मसालों की गंध थी। कई आम-खास मसालों की जन्मस्थली हिंदुस्तान से यूरोप का नाता पिछले 500 वर्षों में जाने किन-किन वजहों से बनता रहा है, लेकिन यह सच है कि मध्यकाल में काली मिर्च, लौंग, अदरक, इलायची, दालचीनी की गंध ने यूरोपीय सौदागरों को दीवाना बना दिया था। मसालों का यह साम्राज्य केरल से गोवा तक फैला है। और गोवा के पोंडा में सहकारी स्पाइस गार्डन में स्पाइस प्लांटेशन टूर आपको मसालों की दुनिया की एक मोहक तस्वीर दिखाता है।
पोंडा के इस मसाला बागान में लैमन ग्रास टी से स्वागत के साथ हमारा सफर शुरू हुआ और दुनिया के दूसरे सबसे मंहगे मसाले यानी वनीला की लताओं से होते हुए सुपारी के पेड़ों, काजू से फेनी बनने की प्रक्रिया, छोटी-बड़ी इलायची के पौधों, हल्दी की गांठों तक से गुजरते हुए दालचीनी, जायफल, जावित्री तक पहुंचा। इन मसाला बागानों में की सैर को अपने टूरिस्टी एजेंडा में जरूर शामिल करें और आप महसूस करेंगे कि गोवा की नमकीन हवा में मसालों की गंध भी समायी है।
हेरिटेज होम

गोवा में हेरिटेज होम्स का भी अद्भुत संसार है। इन घरों में आज भी पुर्तगाली दौर का प्रभाव सिमटा हुआ है। लातोलिम में सल्वाडोर कोस्टा मैंशन हो या अंजुना में मैसकेरेन्हास मैंशन या फिर चंदोर गांव में मैनेजिज़ ब्रैगेन्ज़ा हाउस, इनका पुर्तगाली आर्किटैक्चर बीते दौर में ले जाता है। करीब ढाई सौ से साढ़े तीन सौ साल पुराने इन घरों को आज हेरिटेज हाउस में तब्दील किया जा चुका है और पुराने समय के फर्नीचर, ‘ौंडलियर, बर्तन, रसोईघर, वाॅर्डराॅब, बिस्तर करीने से सहेजकर रखे हैं। मैनेजिज़ ब्रैगेन्ज़ा हाउस गोवा का सबसे भव्य और संभवतः सबसे पुराना ऐसा घर है, इसे देखने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं रखा गया और घर की बुजुर्ग मालकिन आपको बेहद प्यार से एक-एक कोने में छिपी कहानियां सुनाती हैंं। इस पुराने घर के रखरखाव के लिए रखे एक छोटे बाॅक्स में आप जाते समय अपनी इच्छानुसार कुछ भी रकम डाल सकते हैं। कोई बंदिश नहीं, कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं! यही है गोवा की फितरत और उसका जीने का बिंदास अंदाज!
हर मौसम में मस्ती और सुरूर से सराबोर गोवा

मस्ती और सुरूर गोवा की फितरत में है, टैटू से लेकर बालों की ब्रेडिंग तक की जाने कितनी ही मंजिलें हैं। हालांकि मानसून में न अंजुना का फ्ली मार्केट खुलता है और न सैटरडे नाइट बाजार, तो भी ऐसी हल्की-फुल्की शरारतों के लिए गोवा के बाजार में आर्टिस्ट मिल ही जाते हैं। समंदर में पानी की लहरों ने सूनामी का सा कहर ढा रखा हो, समुद्रतट खतरनाक रूप धारण कर चुके हो, शैक और वाॅटर स्पोर्ट बंद हो चुके हों तो भी टैटू के लिए दिल मचल जाए तो गोवा निराश नहीं करता। स्ट्रीट आर्टिस्ट कम ही नहीं मगर इस मौसम में भी ढूंढने से मिल ही जाते हैं।
अॉफ सीजन में गोवा की सैर – फायदे का सौदा
अॉफ सीजन में सैर-सपाटा आपकी जेब के साथ साथ दिलो-दिमाग के लिए भी सुकूनभरा हो सकता है। होटल-रेसोर्ट इन दिनों तरह-तरह की छूट और मानसून पैकेज घोषित कर देते हैं। लेकिन बारिश का असली मज़ा लेना हो तो शहरी गोवा से दूर गांव-देहात का रुख करें। धान के खेतों में रंग-बिरंगी बरसाती से ढके बदन आपको कमर झुकाए दिन भर रूपाई करते दिखेंगे। बारिश के बाद पानी से लबालब भर चुके खेतों में मेंढकों की टर्र-टर्र रात का संगीत जान पड़ेगा।
यकीनन, गोवा में बारिश में हरियाली का अपना अलग ही सौंदर्य है, प्रकृति जैसे थिरकने लगती है। और शहरी भांय-भांय से दूर इस खूबसूरती को आप जी-भरकर निहार सकते हैं। बारिश में गोवा उन लोगों को यकीनन भाता है जो प्रकृति प्रेमी हैं, जिनके लिए पर्यटन भागमभाग नहीं है, और जो जीवन के शोर से अलग कुछ रोज सिर्फ सुकून की जिंदगी चाहते हैं। यानी अगर ’रिलैक्स्ड हाॅलीडे‘ चाहते हैं, तो मानसून में गोवा जाएं।
अलबत्ता, दूधसागर प्रपात जैसे खूबसूरत नजारों को आप देखने से वंचित रह जाएंगे क्योंकि इस प्रपात तक पहुंचने का मोटर रास्ता बंद हो जाता है। लेकिन ट्रैकिंग मार्ग खुला रहता है और कोलम या कासल राॅक से होते हुए करीब 4-5 घंटे के ट्रैक के बाद इस धुंधाधार झरने तक पहुंचा जा सकता है। मानसून में ट्रैकिंग और वाॅटर फाॅल का यह मेल आपकी गोवा की यादों को बेहद खास बना देगा!

यही तो मजा है बारिश में उन जगहों में जाने का जहां बादलों की मेहरबानी कुछ खास होती है। और आपको तब इन पर्यटन ठिकानों का वो सौंदर्य दिखायी देगा जो आमतौर पर टूरिस्टों के सामने नहीं आ पाता।
पीक सीज़न में जाने वाले पर्यटकों को इस बात का अहसास भी नहीं होता कि पार्टी, आतिशबाजी, मौज मस्ती, और हुड़दंग से अलग एक शांत, धीर गंभीर पहलू भी है गोवा का। और इसी रूप का दर्शन करना हो तो जून से सितंबर तक यहां चले आएं।
आपको तमाम ट्रैवल बुक्स में पर्यटन मंजिलों की जो तस्वीर आमतौर पर दिखायी देती है वह पीक सीजन की होती है, और आपसे छिपा जो रह जाता है वो होता है अॉफ सीजन का नज़ारा। ऐसे में आप अॉफ सीजन में जाकर इन पर्यटन ठिकानों के बारे में खुद से कुछ नया जान सकते हैं। यानी एक रटे-रटाए टूरिज्म से अलग पहलू सामने आता है।