अस्कोट-आराकोट अभियान 2014
पहाड़ का जीवंत इतिहास लिखती एक महायात्रा
यह ठीक दस साल पहले की बात है। 2004 की यात्रा का एक पड़ाव था जौनसार-भाबर में कुलटाओं का गांव। पूरब से पश्चिम तक अस्कोट-आराकोट यात्रा के सदस्य अपने कंधों पर लगातार भारी अहसास करा रहे बैकपैक, बस्ते, पानी की बोतलें उतारकर एक तरफ रख चुके थे। पैरों से जूते भी उतर चुके थे। थकान से हर चेहरा पस्त था और हर पेट खाली था। मगर भूख ने उस दिन एक अलग अहसास कराने की ठानी थी। गांव की जिस कुटिया में अभियान दल ने डेरा डाला था और जिस रसोई से रोटी की आस लगायी थी, उसकी मालकिन एक कुलटा थी जिसने यात्रियों को खाना परोसने से साफ इंकार कर दिया था। हर सदस्य पहले से ही भूख से हलकान था लेकिन अब सकते में भी आ गया था। इससे पहले ऐसा कहीं नहीं हुआ था! दिन-भर की यात्रा के बाद दिन ढले टोली जिस भी गांव में पहुंचती थी वहां ग्रामीण अपनी हैसियत के हिसाब से उनका स्वागत-सत्कार करते और जैसा बन पड़ता था, वैसा भोजन कराते। रोटी पर घी-मक्खन भले ही हर जगह नहीं हुआ करता था मगर आत्मीयता का जो स्पर्श उस घर में सदस्यों को मिलता था, वो उनके बीच की अजनबियत की दीवार को एक झटके में धराशायी कर दिया करता। पर आज तस्वीर उलट गई थी। माई ने खाना देने से मना कर दिया। उसे चिंता सता रही थी कि यात्री दल के ऊंची जाति के लोगों को अपने चूल्हे की रोटी देकर वह पाप की हकदार बनेगी। उसे उनके ऊंचे धर्म और अपनी छोटी जात की मर्यादा की चिंता थी। इधर, यात्रियों की भूख का पारावार नहीं रहा था। एक ओर भूख से अकुलाती अंतडि़यों का इंतज़ार था तो दूसरी ओर अपने बरसों पुराने संस्कारों और मर्यादाओं में जकड़ी उस जौनसारी की जिद। मगर दल के सदस्यों की जिद थी कि आज गांव में भोजन तो उसी कुटिया में करेंगे, जात-पांत की दीवारों को ढहाने की कसमें खाने की बजाय दलित की कुटिया में खाना खा लेना उन्हें ज्यादा सार्थक लगा। पूरे दो-ढाई घंटे दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे, माई को मनाने के लिए किसी ने खुद को उसका भाई तो किसी ने बेटा बताने की इमोशनल ब्लैकमेलिंग भी कर डाली। आखिरकार माई के भीतर पल रहा अछूत होने का पहाड़ पिघल गया और वह मुसाफिरों को रोटी खिलाने में जुट गई। माई रोटी बनाती जाती, परोसती जाती और आंखों से आंसू बहाती जाती। लगता था, पता नहीं कितनी पीढि़यों के रुके हुए भावनाओं के दरिया हैं जो तटबंध तोड़ गए हैं। वह भोजन तो करा रही थी मगर दिल में एक दर्द लिए, उसकी इस ‘भूल’ से कहीं किसी का धर्म न बिगड़ जाए!
अस्कोट-आराकोट अभियान के सदस्य यात्रा मार्ग में ऐसे जाने कितने ही अनुभवों-अहसासों से गुजरते हुए, कई-कई मुकाम पार करते हुए उत्तराखंड में पूरब से पश्चिम तक का सफर तय करते हैं। नदी घाटियों से लेकर खुरदरे पहाड़ी मार्गों, बुग्यालों-दर्रों पर जब एक या दो दिन नहीं बल्कि पूरे 45 दिन बिताने हों तो अच्छे-अच्छे घुमक्कड़ों की हिम्मत जवाब दे जाती है। मगर उनकी थाती होती है रास्ते में मिलने वाली ऐसी ममतामयी ‘माई’ से लेकर हुड़का बजाते किसी लोक कलाकार की थपक या किसी लोकगायक की पहाड़ी धुनें, कभी चिपको आंदोलन की नायिका गौरा देवी का अपनत्व से भरा आलिंगन या उत्तरकाशी से निकली भारत की पहली महिला एवरेस्टर बछेंद्री पाल का पैतृक घर जिसे यात्रा मार्ग में तीर्थ की तरह खंगालते-बीनते-चुनते हुए चले जाते हैं ये यात्री! यह ऐतिहासिक यात्रा नदियों के प्रवाह की ही तरह होती है और रास्ते में पड़ने वाले उत्तराखंडी समाज की छोटी-बड़ी उपलब्धियों, उसकी गुमनाम हस्तियों, उसके किस्से-कहानियों, उसकी ठिठोलियों तो कभी किसी खिड़की से झांकती उसकी आंखों में अटके इंतज़ार और उसके युवाओं के सपनों, आकांक्षाओं, समस्याओं से लेकर दूर-दराज तक चली आयी सड़कों के रूप में प्रगति का कच्चा-चिट्ठा भी समेटती है।
पांचवां अस्कोट-आराकोट अभियान पिछली द’ाकीय यात्राओं की तुलना में अधिक व्यापक होगा। टैक्नोलाॅजी और विज्ञान का तालमेल सदस्यों के कदमों के साथ रहेगा, जीपीएस, पेडोमीटर, मौसम विज्ञान, ग्ले’ियर विज्ञान, नदियों के जलमार्गों की दि’ाा और द’ाा के अलावा उत्तराखंड समाज से पलायन के स्वरूप को भी टटोलने की कोशिश यात्रियों की रहेगी। यह उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से बीते 14 वर्”ाों की तड़प का जायज+ा लेने का भी अभियान होगा।
1974 में एन्वायरनमेंटलिस्ट सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा से जिस अस्कोट-आराकोट अभियान ने छात्र अध्ययन यात्रा के तौर पर अपना सफर बगैर किसी बड़े इरादों या तामझाम के साथ शुरू किया था, उसका कमोबेश वही चरित्र बरकरार रखते हुए अगले हर दशक में यात्रा का निरंतर आयोजित होते रहना ही अपने आप में किसी उपलब्धि से कम नहीं है। इस यात्रा के माध्यम से दुर्गम-दूरस्थ उत्तराखंड का आंखों-देखा, सिलसिलेवार ब्योरा पहली बार व्यापक रूप से सामने आया था। अगली बार यानी 1984 की यात्रा में अस्कोट से कुछ आगे एकदम सीमा पर बसे पांगू से इस अभियान की शुरूआत हुई। पांगू-आस्कोट-आराकोट अभियान के महायात्रियों को किसी मंत्री ने न कभी झंडी दिखाकर रवाना किया और न किसी ब्रैंड एम्बैसडर की भागीदारी इसमें रही, न किसी कार्पोरेट की पूंजी अभियान दल के सदस्यों के पैरों की दिशा को कभी मोड़ पायी।
जाने-माने इतिहासकार, लेखक और उत्तराखंड के चलते-फिरते एंसाइक्लोपीडिया कहलाने वाले पद्मश्री शेखर पाठक, जो कि यात्रा के संस्थापक सदस्यों में से हैं और अब तक की हर यात्रा में शामिल रहे हैं, कहते हैं, “यात्रा के आर्थोडाॅक्स होने की एक बड़ी वजह यह है कि हम उत्तराखंड के सीधे-सरल समाज को करीब से जानना-समझना चाहते हैं। लिहाजा, यात्रा अवधि में हर रोज उनके बीच से ही अपनी राह तलाशते हैं और शाम ढले उनके घरों में ही किसी तरह, उनका बिस्तर-चारपाई बांटकर रात बिताते हैं। इस तरह, देहाती, सुदूरवर्ती समाज के साथ कुछ दिन बिताकर हम उन्हें बेहतर तरीके से जान पाते हैं। अगर किसी प्रायोजक से पैसा लेकर इस यात्रा को करेंगे तो उसके ब्रांड की टीशर्ट, जूते पहनकर चलना और स्विस टैंटों में रुकना होगा, कुक के हाथ का बना भोजन करेंगे और बोतलों का पानी पिएंगे। तब क्या खाक अपनों को जानेंगे ?”
रेवाधार की जीवन-यात्रा के बहाने भी इस यात्रा को समझा जा सकता है। कभी 1974 में बालक रेवाधर से यात्रियों की मुलाकात हुई थी और अगली यात्रा में किशोर और फिर नब्बे के दशक में एक युवक के तौर पर उससे मिलने का सिलसिला बना रहा। इस बीच, उसकी आंखों में तैरते सपनों और उसके मोहभंग की स्थिति का आकलन यात्रा ने किया। 2004 की यात्रा में रेवाधार वृद्धावस्था की ओर कदम बढ़ा चुका था। और इस बार ?
2014 की अस्कोट-आराकोट यात्रा का एक मुकाम वो भी है, उसे भी छूना है इस बार!
पिकनिक नहीं पहाड़ों को नापने की तड़प का नाम है अस्कोट-आराकोट अभियान
शेखर पाठक चेताते हैं – “इसे ट्रैकिंग या पिकनिक समझने की भूल न करें। और न ही यह सोचकर इस अभियान से जुड़ें कि गर्मियों के मौसम में उत्तराखंड के ठंडे पहाड़ों पर सैर हो जाएगी। अस्कोट-आराकोट अभियान 1974, 1984, 1994, 2004 में आयोजित हो चुके पूर्ववर्ती अभियानों की ही तर्ज पर इस बार भी उत्तराखंड के विषम , अंतरवर्ती, अगम्य और खतरनाक इलाकों से होकर गुजरेगा। चूंकि अभियान दल का रास्ता उन्हीं इलाकों से भी होकर गुजरता है जो पिछले साल केदारनाथ त्रासदी से प्रभावित रहे हैं, लिहाजा इस बार एक चुनौती यह भी बढ़ गई है कि उस बाढ़ में बह गए पुलों-सड़कों और पगडंडियों के होने या न होने के बीच से कहीं राह तला’ानी होगी। यानी मार्ग की अनिश्चितता इस बार एक नई चुनौती होगी।”
पहाड़ों के मिथकों की थाह पाने से लेकर सामाजिक तड़प की पड़ताल का अभियान है पहाड़ (पीपल्स एसोसिएशन फाॅर हिमालय एरिया रिसर्च – PAHAR) संस्था द्वारा दस साल में एक बार आयोजित किया वाला अस्कोट-आराकोट अभियान। उत्तराखंड में नेपाल से लगे पूर्वी सीमावर्ती इलाके अस्कोट से 25 मई, 2014 को शुरू होने वाली इस पदयात्रा में शामिल यात्रियों के कदम अगले 45 दिनों तक पश्चिम की ओर बढ़ते रहेंगे और 8 जुलाई को उत्तरकाशी में एक अन्य सीमावर्ती कस्बे आराकोट में पहुंचकर ही थमेंगे। अभियान के संस्थापक सदस्यों में से एक शेखर पाठक इसे जारी रखने के पीछे अपनी बेचैनी को छिपा नहीं पाते। वे कहते हैं, “पिछले 40 वर्षों में इस पदयात्रा का जो मिजाज़ रहा है, वह इस बार भी जारी रहेगा। यानी मंगथनवा (पूरे यात्रा मार्ग में पैदल सफर के दौरान भोजन-पानी की जरूरतों के लिए राह में मिलने वाले ग्रामीणों /बसासतों पर पूरी तरह निर्भर) बनकर जो इस यात्रा का सहयात्री बनना चाहे, कभी भी, कहीं भी, बिना किसी औपचारिकता के जुड़ सकता है। शर्त बस इतनी सी है कि जेब में दमड़ी न हो मगर सीने में तड़प हो, अपने गांवों को जानने की उत्कट इच्छा, अपने पहाड़ों को समझने की बेचैनी और अपने लोगों के जीवन को करीब से देखने की अपार ललक!”
बेचैनियों और पैरों की खलिश के सहारे कितनी दूरी नापी जा सकती है, इसका अंदाज लगाना हो तो पिथौरागढ़ में नेपाली सीमा से सटे पांगू गांव से ही इस महायात्रा का हिस्सा बनें। यात्राएं इस मायने में महान होती हैं कि वे हमें हमारी तुच्छता का अहसास कराती हैं। लेकिन अस्कोट-आराकोट अभियान जैसी महायात्राओं में सहभागी बनने का निमंत्रण इस मायने में भी खास है कि क्योटो से लेकर रियो डी जनेरो तक में जिस हिमालयी सरोकारों की गूंज है, उसकी संतानों के लिए यह अपने पर्वतों के संकट को समझने, उनके आर्तनाद को नजदीक से सुनने और किताबों-इंटरनेट की दुनिया से निकलकर सीधे प्रकृति तथा मनु”य के बीच जाकर इंसानी आकांक्षाओं के दबाव से बिगड़ते संतुलन का असल रूप देखने को मिलेगा।
कहां कहां से गुजरेंगे यात्री
अस्कोट-आराकोट अभियान 2014 के सदस्य 7 जिलों – पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी तथा देहरादून के लगभग साढ़े तीन सौ गांवों में जाएंगे। इस दौरान, इस लीक से हटकर होने वाली ‘विनम्र यात्रा’ के ये सहभागी 35 छोटी-बड़ी नदियों, 16 बुग्यालों-दर्रों, 20 खरकों, भूकंप-भूस्खलन और बाढ़ से प्रभावित अनेक घाटियों, उत्तराखंड के तीथयात्राओं के मार्ग में 15 उजड़ती चट्टियों, जनजातीय इलाकों और 6 प्रमुख तीर्थयात्रा मार्गों (चार धाम के अलावा कैलास-मानसरोवर तथा नंदा राजजात) से होते हुए लगभग 1100 किलोमीटर का फासला नापेंगे। ये यात्री, बीते वर्षों में उत्तराखंड के अंतरवर्ती इलाकों से लेकर बाहरी सीमा पर बसे नगरों-कस्बों में सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक विकास का ताना-बाना कितना मजबूत हुआ, कितना कमज़ोर पड़ा इसकी पड़ताल भी करेंगे।
कौन हैं अस्कोट-आराकोट अभियान 2014 के सहयात्री
अमरीका स्थित स्टेट यूनीवर्सटी आॅफ न्यूयार्क में समाजशास्त्र के प्रोफेसर स्टीव डर्ने अस्कोट-आराकोट अभियान में पूरे 45 दिन साथ चलने के संकल्प के साथ आ रहे हैं तो भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) के भूगर्भ विज्ञानी (जियोलाॅजिस्ट) नवीन जुयाल भी उत्तराखंड के पहाड़ों के तेवर समझने के लिए साथ होंगे। कुछ मौसम विज्ञानी भी पहाड़ों के रूठने-बिगड़ने के कारणों को समझने के लिए इस पदयात्रा का हिस्सा बने रहे हैं। इनके अलावा, चंडी प्रसाद भट्ट, अमरीका स्थित आॅरेगन स्टेट यूनीवर्सटी में बॉटनी की रिसर्च असिस्टैंट प्रोफेसर सुषमा नैथानी और साथ में होंगे देश के कोने-कोने से आए छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता, रंगकर्मी, लेखक, मीडियाकर्मी और वो भी जिनके नाम के साथ ऐसा कोई पुछल्ला नहीं लगा है। यानी आप और हम भी अस्कोट से आराकोट तक की इस यात्रा में इस बार सहयात्री बन सकते हैं।
अगर जुनूनी हैं आप तो बस पैक करें बैक पैक और बन जाएं अभियान का हिस्सा
पंजीकरण आवश्यक नहीं, कोई शुल्क नहीं
कभी भी यात्रा से जुड़े और कभी भी अलग हो जाने का विकल्प
बैक पैक के अलावा स्लीपिंग बैग, रेनकोट, ऊनी गरम कपड़े, आयोडीन की गोली (पानी शुद्ध करने के लिए), डेटाॅल, नमक (रास्ते में जोंक के हमलों से बचने के लिए), बुखार, पेट दर्द के लिए बेसिक दवाएं, वाॅकिंग शूज़, अपनी दैनिक जरूरत के लिए ब्रश, पेस्ट वगैरह
कैमरा, मोबाइल, जीपीएस, पेडोमीटर, लैपटाॅप, रिकाॅर्डर, डायरी, पैन वगैरह साथ ले जाने की पूरी छूट। यात्रा की प्रवृत्ति डॉक्यूमेंटेशन को प्रेरित करने वाली है, लिहाजा ज्यादा से ज्यादा देखें-सुनें-समझें और जितना हो सकें रिकार्ड रखें जिसे बाद में साझा करने के लिए वर्कशॉप के आयोजन की भी योजना है।
पैसा (मामूली पैसा ही अपने पास रखें जितना यात्रा मार्ग तक आने-जाने के लिए जरूरी हो), दाल-मसाले, मेवे इत्यादि साथ न लाएं, राह में जो मिले उसे सभी के साथ बांटकर खाने की भावना जरूरी है
यह स्वैच्छिक प्रकृति की यात्रा है और पहाड़ संस्था किसी भी प्रतिभागी की सुरक्षा, जीवन की कोई जिम्मेदारी नहीं लेती
मन में कोई सवाल, कोई जिज्ञासा हो तो ईमेल से संपर्क करें – pahar.org@gmail.com
Date | Day | Scheduled route of trek |
PITHORAGARH District | ||
May 25 | Sunday | Kick-Start the campaign at PANGU, near Narayan Ashram, Dharchula, Pithoragarh |
May 26 | Monday | Tawaghat, Dhaauli East, Khela, Palpala, Syankuri , Elagad, Tapovan Dharchula, Kalika |
May 27 | Tuesday | Baluwa-Kot, Khati Bagarh, Gagara, Binyagaon, Dhungatoli, Kimkhola, Jaul-Jivi, Tham, Garjiya, Gori River, Askot, Narayan-Nagar |
May 28 | Wednesday | Main event for the day at Govt. Inter College, Askot, Askot, Garjiya and Balmara villages |
May 29 | Thursday | Chifaltara, Toli, Kharhpaira, Ghatta-Bagarh, Baram, Chami, Marhwal, Lumti, Chhori-Bagarh |
May 30 | Friday | Bangapaani, Shilang, Khartoli, Mawani-Dwani, Sera, Taanga, Madkot, Munsyari |
May 31 | Saturday | Munsiyari : Visits to various Schools and institutions for interaction with students and local people |
June 01 | Sunday | Harkot, Paatal-Thaura, Kalamuni, Girgaon, Birthi, Bhurting, Kethi, Bala, Rugeru-Kharak |
June 02 | Monday | Gail-gaarhi Kharak, Namik (Last village in Ramganga valley in Pithoragarh) |
BAGESHWAR District | ||
Ramganga (Eastern) Keemu, first village of the district | ||
June 03 | Tuesday | Chhuloria Kharak, Lamtara Kharak, Bhaisiya Kharak, LAHUR |
June 04 | Wednesday | Soopi, Tataayi, Gaasi Gaon, Ghurkot, Sumgarh, (Saryu river), Chaurha-Thal, Kaithi, Karmi |
June 05 | Thursday | Environment Day, Suraag, Pataakh, Teek, Daula, (Pinder Riiver), Badiyakot |
June 06 | Friday | Baura Kharak, Shambhu-Gadh, Samdar, Bor Balarha, Bharad Kande (Last village of Bageshwar) |
June 07 | Saturday | Raaj Kharak at the border between Bageshwar and Chamoli districts |
CHAMOLI District | ||
June 07 | Saturday | Mana-toli bugyal, Dulaam Kharak, Himani, Ghesh |
June 08 | Sunday | Balaan, Mauni Kharak, Aali bugyal/ and Aali kharak |
June 09 | Monday | Vaan (Kailganga), Kanol |
June 10 | Tuesday | Sutol (Nandakini river) Pairi, Geri, Aala |
June 11 | Wednesday | Padher Gaon, Ramni, Jhinjhee (Birahee or Bir Ganga) |
June 12 | Thursday | Pana, Irani, Kuarikhal, Danu Kharak, Raakhaili kharak, Karchhi |
June 13 | Friday | Dhak Tapowan, Raini, (Village of Gaura Devi, Chipko women’s village) Tapowan |
June 14 | Saturday | Bara Gaon, Joshimath, Dhauli West River, Helang |
June 15 | Sunday | Dungari, Barosi, Salad Dungra, Patal-Ganga, Pipalkoti, Hatgaon, Chhinka Gopeshwar |
June 16 | Monday | Bachher and near by villages around Gopeshwar (Rest at Gopeshwar) |
June 17 | Tuesday | Khalla, Mandal (Chipko village) Baal-Khila river, Badakoti and Bairangana |
June 18 | Wednesday | Bhains Kharak, Kanchula Kharak, (Musk dear park), Chopta |
RUDRAPRAYAG District | ||
June 19 | Thursday | Taala, Saari, Usara, Mastoora, Sirtola, Kanya-Gaon, Kimana Gaon, Akashkamini river, Makku and Ukhimath |
June 20 | Friday | Mandakini valley, Guptakashi, Nala, Hyuna, Narayankoti, Jyurani, Byunj-Gad, Mekhanda, Fata (Another Chipko village) |
June 21 | Saturday | Badasu, Shersi, Rampur, Sitapur, Kedarnath – Trijuginarayan |
June 22, | Sunday | Maggu Chatti, Kingkhola, border between Rudraprayag and Tehri districts |
TEHRI District | ||
June 22 | Raj-Kharak | |
June 23 | Monday | Powali Kharak, Dophand Kharak, Pobami Kharak, Pyao Kharak, Gawana, Rishi-Dhaar, Ghuttu |
June 24 | Tuesday | Bhilangana river, Sankari, Hitkura, Bhatgaon, Bajinga, Bhairo-Chatti, Kaldi Chatti, Bheti, Khawada (Earth quack affected areas) |
June 25 | Wednesday | Vinakkhal, Kundiyala, Dalgaon, Tisadmana, Budha-kedar |
June 26 | Thursday | Aagar (Baal-Ganga river) Newal gaon, Merh, border between Tehri and Uttarkashi distrcts |
UTTARKASHI District | ||
June 27 | Friday | Raktiya, Kumarkot, Bhadkot, Bhetiyara, Dikheli, Saur, Chaurangikhal, Ladari (forest movement), Joshiyara |
June 28 | Saturday | Brahmpuri (entering in Uttarakhashi) Khaal, Kamad Uttarkashi (Bhagirathi river) nearby villages |
June 29 | Sunday | Uttarkashi, flash flood (June 2013) affected areas |
June 30 | Monday | Continue survey of flood affected and Varunawat landslide affected areas |
July 01 | Tuesday | Badethi, Matli, Nakuri, Barsali, Garh, Falancha Kharak |
July 02 | Wednesday | Raajtar, Barkot, Koti Banal, Krishn Gaon (River Yamuna Valley) Tunakla and Naugaon |
July 03 | Thursday | Chhudoli, Veeni-Gadhera, Chandela, Purola town |
July 04 | Friday | Purola and near by villages, Kamal river |
July 05 | Saturday | Agora, Moltadi, Peera, Jarmoladhar, Kharsari, (Khooni Gad), Mori |
July 06 | Sunday | Sandra (Tonse river), Khooni Garh, Badiyaar, Hanol, Badhottara |
DEHRADUN District | ||
Chatrigad, Koti, Koona, Mahendrath | ||
UTTARKASHI District | ||
July 07 | Monday | Sainj, Tyuni, (Pabbar river) Pegatu, Bhargadhi, Kadhang, Ziradh, Pandranu(Himachal Pradesh) and Arakot :the last village of Uttarkashi bordering HP |
July 08 | Tuesday | Govt Inter College Arakot, concluding meeting and interactions |
This is very informative article with nice photos and Yatra details. I was reading about AAA in Pahar-14-15.Your article is well written- we liked very much.
आभार आपका मैथाणी जी, मेरे ब्लॉग तक आने और इस ऐतिहासिक यात्रा का विवरण पढ़ने के लिए। उम्मीद है यात्रा के सहभागी आप भी होंगे, आगे के किसी पड़ाव में आपसे मुलाकात होगी ..
कुलटा माई के घर अभियान दल का आिखरकर भोजन करने की घटना न केवल एितहािसक है बलकि हजारौं दशकौं से चली आ रही सामािजक बंधनौं को नेसतनाबूद करने का एक अनूठा और जीवंत उदाहरण है िजसके िलए समूचा अ िभयान दल का कुनबा साधुवाद का पातृ है…Hope the present expedition will have many more such historic and social events to bring welcome change in the existing socio -cultutural environemnt…..Thanks for nice reporting ….
Surely, the yatris are also creating history while being witness to the one during the course of their journey.