अगर आप अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि सर्दियों में कहां सैर-सपाटा किया जाए तो यकीन मानिए इस दुविधा से जूझने वाले आप अकेले नहीं हैं। लेकिन आपका सवाल हो सकता है कि सर्दियां ही क्यों ? वो इसलिए कि भारत जैसे गर्म देश में सर्दियां ही सैर-सपाटे के लिहाज से आदर्श होती हैं और अधिकांश हिस्सों में इन दिनों गर्मियों से राहत मिल जाती है। इन दिनों हिंदुस्तानी टूरिस्टों के अलावा विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में देशभर में यहां से वहां घूमते हुए दिख जाएंगे। रंगीले राजस्थान में जनवरी में जयपुर लिटरेचर फैस्टिवल की धूम सैलानियों को आमंत्रण देती है तो गुजरात टूरिज़्म द्वारा दिसंबर से फरवरी तक कच्छ का रन उत्सव जैसे आयोजन सैलानियों को सुदूर पश्चिम में आने का न्योता भेजते हैं।
उधर, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड में स्कींग, स्केटबोर्डिंग, माउंटेनियरिंग, ट्रैकिंग जैसी एडवेंचर गतिविधियां सैलानियों के एक खास वर्ग को आकर्षित करती हैं। यानी, इन दिनों साहित्यानुरागियों से लेकर एडवेंचर प्रेमियों तक, या बस यूं ही घर से किसी दिलचस्प मंजिल की तरफ निकलने के जुनून से लबरेज़ हर तरह के टूरिस्ट के लिए देश के अलग-अलग भागों में कुछ-न-कुछ खास होता है।
दक्षिण भारत को जानने का बेहतरीन मौसम
पुदुचेरी को चुनें, यहां की गुनगुनी हवा में अलसाए समुद्रतटों पर खिलंदड़ी कर खुद को तरोताज़ा करें या आरोविल में अध्यात्म की अद्भुत खुराक से तन और मन दोनों को ताज़गी से भर दें। मेडिटेशन और योग दोनों का मेल इस जमीं पर उपलब्ध है। पुदुचेरी की हवा में फ्रांसीसी तासीर आज भी महसूस की जा सकती है जो यहां पुरानी इमारतों के वास्तुशिल्प से लेकर अरविंदो आश्रम के इर्द-गिर्द खड़ी बस्ती और उसकी गलियों से साफ झलकती है। इसके सुनहरी रेतीले समुद्रतटों पर सैर करने के अलावा आप यहां के बुटिक होटलों, शोरूमों, रेस्टॉरेंट में अपनी शामें बिता सकते हैं। उत्तर भारत के भीड़-भड़क्के से उकता चुके हैं, नफासत और संजीदगी की तलाश में हैं तो बस आंख मूंदकर पुदुचेरी चले आइये। दक्षिण भारत में तमिलनाडु की ओट में छिपा यह नन्हा-सा मोती यानी पुदुचेरी आपकी छुट्टियों को हमेशा के लिए यादगार बनाने का माद्दा रखता है!
सच तो यह है कि सर्दियों का मौसम दक्षिण भारत घूमने का बेहतरीन समय है। तमिलनाडु में ऊटी, कोडइकनाल और ऊटी के नज़दीक यरकुड कुछ ऐसे हिल स्टेशन हैं जहां आप सर्दियों में जा सकते हैं। अध्यात्म में रुचि रखते हैं या घर के बुजुर्गों को घुमाने ले जाना चाहते हैं तो तमिलनाडु का टैम्पल सर्किट आप ही की बाट जोह रहा है।
‘इंक्रेडिबल इंडिया’ के स्लोगन को विश्वास की पुख्ता ज़मीन देने वाले राज्य केरल को टटोलने, जानने का भी यह साल का सबसे उपयुक्त समय होता है। केरल के हिल स्टेशनों से लेकर समुद्र तट जैसे एकदम बांहे फैलाए होते हैं। यहीं इसी ज़मीन पर कोच्चि शहर में गुजरे दौर के यहूदी जीवन की झांकी देखी जा सकती है तो अन्य भागों में स्पाइस प्लांटेशन टूर किए जा सकते हैं। दुनिया में सबसे कीमती मसाले का दर्जा हासिल करने वाले वनीला (आइसक्रीम का वनीला फ्लेवर देने वाला) की लताओं से लेकर काली मिर्च, दालचीनी, लैमन ग्रास की महक से सराबोर मसालों के बागान केरल की खास पहचान हैं। इन मसालों की महक ही तो थी जो यूरोपीय औपनिवेशिक ताकतों को भारत भूमि की ओर खींच लायी थी। पुर्तगाल से होते हुए भारत के समुद्री मार्ग की खोज करने वाले वास्को डि गामा ने केरल के तट पर ही अपने लंगर डाले थे। इस इतिहास की दबी परतों को कुरेदने के लिए ही सही, इस बार केरल चले आइये। कुमराकोम, कोवलम, अलिप्पी के बैकवॉटर्स के अलावा इस राज्य में पेरियार सैंक्चुअरी, कुमली के वर्षा वन से लेकर और भी कई आकर्षण छिपे हैं।
भारत का पश्चिमी तट है खास
उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में शन्य डिग्री को छूने और कहीं-कहीं तो इससे भी नीचे गिर जाने को बेताब पारे और कुहरे से बचने के लिए पश्चिम में गोवा, गुजरात जैसे राज्य अच्छे विकल्प हैं। गोवा में सैलानियों के जत्थे उमड़ पड़ते हैं इन दिनों और ऐसे में क्रिसमस-नए साल के आसपास यहां होटलों समेत अन्य टूरिस्ट सुविधाओं का टोटा होने लगता है। इस भीड़ से बचने के लिए आप फरवरी के महीने में गोवा जाएं जब कार्निवाल के चलते पूरा राज्य जश्न के माहौल में डूबा रहता है और साथ ही यहां नया साल मनाने आए टूरिस्ट भी लौट चुके होते हैं।

कहते हैं ‘कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा’। तो इस बार रन उत्सव या गांधी सर्किट को टटोलने के बहाने, देशभर को नमकीन अहसास से सराबोर करने वाले नमक को साक्षात बनते देखने के लिए बस गुजरात हो आइये।
और हिंदुस्तान का दिल भी बुला रहा है
बीते साल आप जिम कॉरबेट से लेकर रणथंभौर तक के वनों में बाघ की तलाश में घूमे, मगर हताशा के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगा तो अब हमारी सलाह मानिए और मध्यप्रदेश के जंगलों का रुख करें। कान्हा, पन्ना, पेंच, बांधवगढ़ .. अरे हां, एक छोड़ कई-कई अभयारण्य इस राज्य में पसरे पड़े हैं और बांधवगढ़ नेशनल पार्क तो जैसे बाघ से मुलाकात की गारंटी है।
लीक से हटकर, भीड़ से अलग जाने की कोशिश करें, कोई ऐसी मंजिल चुनें जिस तक पहुंचने की पगडंडी पर ज्यादा लोग न गुजरें हों। और मध्यप्रदेश में ऐसे कई ठिकाने मिल जाते हैं। केन नदी के किनारे घड़ियाल सैंक्चुअरी ऐसा ही एक ठौर है।
लद्दाख : ठंड और सैलानियों का बारहमासी बसेरा
भीड़ तो क्या सभ्यता तक ने अभी लद्दाख के दूरदराज के इलाकों में अपने पंख नहीं फैलाए हैं। ऐसी ही एक जगह है जंस्कार जहां जंस्कारी आदिवासी बसते हैं। सर्दियों में, मध्य जनवरी से फरवरी के बीच जंस्कार नदी के जमने के बाद यही उनकी सड़क होती है और यही हाइवे। इस जमी हुई नदी पर, जबकि पारा शून्य से 15 से 35 डिग्री तक नीचे गिर चुका होता है, ट्रैकिंग करना एडवेंचरप्रेमियों के लिए बड़ी चुनौती होता है। एडवेंचर की तीखी खुराक की तरह है चादर ट्रैक। इस बार Ladakh in winter साकार करने के बारे में सोचें। और हां, लद्दाख में सिर्फ पैंगॉन्ग लेक और रैन्चो का स्कूल ही नहीं है! यहां और भी कई ज्यादा खूबसूरत झीलें, ऊंचे-खतरनाक दर्रे, दुनिया के सबसे पुराने मठ और मंदिर भी हैं। बुद्धिस्ट सर्किट का एक अहम् मुकाम है लद्दाख।
सदाबहार रंग-रंगीला राजस्थान तो है ही!
जैसलमेर में थार की रेत पर, सितारों के नीचे रेगिस्तानी सर्द रातों का अहसास भी वाकई खास होता है। नए साल के आसपास यहां टैंट नगरियां बसने लगती हैं और फरवरी में जैसलमेर उत्सव तक इस सरहदी शहर की गलियां मांगनियार कलाकारों के नृत्य-संगीत, कठपुतली शो, नटों के जौहर से गुलज़ार रहती हैं।
आप चाहें तो जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर, शेखावटी के किलों, राजमहलों, हवेलियों, बावड़ियों और राजसी वैभव का दीदार कर सकते हैं। राजस्थान का हस्तशिल्प पर्यटकों को हमेशा से लुभाता आया है और यही वजह है कि यह देश के कुछ ऐसे गिने-चुने राज्यों में से है जहां टूरिज़्म के साथ शॉपिंग का जबर्दस्त मेल दिखायी देता है।
उत्तराखंड की सर्दियां भी इस बार होंगी खास

सर्द रातों में बोनफायर और बारबीक्यू का लुत्फ लेने के लिए रामगढ़, पंगोट, भुवाली, मुक्तेश्वर, बिनसर, कौसानी, मुनसियारी जैसी मंजिलें बहुत हैं देवभूमि में और मज़े की बात तो यह है कि आज भी राज्य के कई क्षेत्र ‘अनट्रैवल्ड’ ही हैं, यानी वहां तक न सैलानी पहुंचे हैं और न फास्टफूड ज्वाइंट्स। रटे-रटाए और पिटे-पिटाए पर्यटक ठिकानों से कहीं दूर निकल जाने का मन हो तो उत्तराखंड चले आओ!